Post – 2016-05-18

‘’तुम बातें गढ़ लेते हो। लाजवाब कर देते हो। यह बताओ, जो चुप रह जाता है, उस खास मौके पर सही जवाब नहीं तलाश कर पाता है, कहो मात खा जाता है, क्या वह गलत होता है।‘’

सवाल उसने बहुत सही उठाया था। इससे पहले मेरा भी ध्या न इस पक्ष की ओर न गया था। मुझे मानना पड़ा, ‘’नहीं, कई बार चुप लगाने वाला इतना सही होता है और उसकी चुप्पी् के कारण अपने को सही समझने वाला इतना गलत होता है कि चुप लगाने वाला अपनी चुप्पी से भी यह बता जाता है कि ऐसे नासमझ से बहस करना भी उसे इज्ज त बख्शना है। इसलिए वह हारता नहीं है, न गलत सिद्ध होता है, वह शालीनता की रक्षा करता है और आहत होता भी है तो इसका उसके मनोबल पर कोई असर नहीं पड़ता।
वह खुश हो गया, ‘ यही तो मैं तुमसे सुनना चाहता था।”
”केवल सुनना चाहते थे, कु छ जानना नहीं चाहते थे। अपने को सही सिद्ध करना चाहते थे। क्‍या इस बात पर गौर किया कि इस चिन्‍ता ने तुम्‍हें उस औकात में पहुंचा दिया जहां लोग जुआ खेलते हैं, जीतना चाहते है, समझना नहीं।