Post – 2016-05-17

निघर्घट माहात्म्य

‘‘यह बताओ, पुरातन से तुमको इतना मोह क्यों है कि वर्तमान से मुंह मोड़ कर हजारों साल पीछे भटकते रहते हो?’’

मैं हँस पड़ा तो उसका आत्मविश्वास डगमगा गया, हँस कर बोला, ‘मैंने कुछ गलत कहा?’

‘यह सवाल बार बार क्यों पूछते हो, गलतियाँ सिर्फ उनसे होती हैं जो सही गलत का फर्क जानते हैं और उसका घ्यान रखते हैं। एक बात बताओ, तुम तो हिन्दी के आचार्य हो, निघर्घट का मतलब जानते हो। इसकी धातु प्रत्यय उपसर्ग वगैरह!’

वह खीझा तो, ‘कैसी कैसी ऊलजलूल बातें बीच में भिंड़ाते रहते हो!’’ परन्तु साथ ही सोचने भी लगा। माथे पर त्यौरियाँ पड़ गईं। न धातु समझ में आ रही थी न उपसर्ग- प्रत्यय। पर हार मानने की जगह आरोप लगाने लगा, ‘मेरे सवाल का जवाब देते नहीं बन रहा था इसलिए ऐसा तुक्का मारा जो तीर का काम करे!’

मैंने कहा, ‘देखो, तुम जिस धातु, प्रत्यय, उपसर्ग से शब्द का अर्थ समझना चाहते हो उससे भाषा को समझा नहीं जा सकता क्योंकि वह बाद में आविष्‍कार की गई एक युक्ति है भाषा का विवेचन करने का और बहुत वैज्ञानिक भी, परन्तु क्या विज्ञान आत्मा की खोज कर सकता है जिसे उसके बोधवृत्त से बाहर रखा गया है।

‘इस शब्द में वह सब कुछ है जिसका सहारा अर्थ समझने के लिए लिया जाता है, परन्तु यह एक मुहावरे का कैप्सूलीकरण है! मुहावरा है ‘धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का’। अब देखो तो इस शब्द के निर्माण में पहले पद-बन्ध को छोड़ दिया गया। इसे तो सभी जानते हैं। न घर का न घाट का संस्कृतीकरण करके न को नि उपसर्ग में बदला गया, घर को केन्द्रीयता दी गई, घाट से पहले के न को गायब कर दिया गया और गायब कर दिया गया का को भी। शब्द संस्कृत की माँगों के अनुसार बना और रह गया भदेस! तत्सम शब्दों में इसकी गणना हो नहीं सकती, लौट कर जनभाषा में भर्ती हो गया।’

वह खीझ गया, ‘तुममें किसी को बोर करने की अनन्त क्षमता है!’

‘उसका ज्ञान मुझे है, इसलिए इस बात पर गौर करो कि इस शब्द में जो छूट गया वह था कुत्ता! मुहावरे की रचना की बारीकी को समझो! कुत्ता की जगह गधा भी हो सकता था, परन्तु गधा धेाबी के लिए घर से घाट तक उपयोगी है और उसका अर्थशास्त्र यह कि उसे चारा भी नहीं डालना पड़ता, चर कर स्वयं आ जाता है। कुत्ते को कौरा भी दो, पर न धोबी के घर पर काम आता है, क्योंकि गन्दे कपड़े कौन चुराएगा, इसलिए घर पर रखवाली जरूरी नहीं, घाट पर धेाबी स्वयं होता है!‘

कौरा का मतलब उसकी समझ में नहीं आया था, वह इसे चैारा या चबूतरा समझ बैठा था। समझाना पड़ा, ‘देखो शब्दों के भीतर इतिहास के वे सूत्र कैसे छिपे होते हैं जो इतिहासग्रन्थों में अँट नहीं सकते, परन्तु जिनके बिना राजाओं के कारनामों वाला इतिहास तो समझा जा सकता है परन्तु लोक और संस्कृति को नहीं!

‘कौरा एक कवल या ग्रास का सूचक है। पहले निजी कुत्ते विशेष पेशे के लोगों द्वारा ही पाले जाते थे। सामान्य नागरिक कुत्तों के लिए अपने भोजन का एक ग्रास अलग कर देते थे और उसे बाहर ला कर कुत्तों के लिए रख देते थे। इस तरह कुत्ते निजी नहीं सामाजिक होते थे और सभी की सुरक्षा का घ्यान रखते थे। जानते हो, अपने मकान में मैं ऐसा ही एक ग्रास बाहर रखता था और एक कुत्ता जो उसको अपना ग्राह्य समझता था मेरी बेटी को एक किलोमीटर तक साथ छोड़ने जाता था और जब वह बस में बैठ जाती तब लौटता था।’

‘देखो, मैं ज्योतिष नहीं जानता पर यह जानता हूँ कि पिछले जन्म में तुम कबाड़ी रहे होगे। कहाँ कहाँ की सड़ी गली चीजें इस शान से पेश करते हो कि यही तुम्हारी दौलत है!’

मैं उसको सुनते हुए मुस्कराता रहा। जब वह चुप हुआ तो कहा, ‘इतनी देर बाद भी नहीं समझ में आया कि मैंने निघर्घट का अर्थ क्यों पूछा था। तुम न घर के हो न घाट के ! न अतीत के न वर्तमान के! तुम इतिहास से भी भागते हो और वर्तमान से भी। न इतिहास को समझते हो न वर्तमान को, न इनके संबन्ध को न इनके द्वन्द्व को न इस द्वन्द्व से प्रकट होने वाले उस आलोक का सामना कर पाते हो, जिसकी आवश्यकता भविष्यनिर्माण में होती है और इसके बाद भी अपने को वाचडाग या पहरेदार कुत्ता समझते हो! तुम जिनकी रक्षा का भ्रम पालते हो उन्हें तुम्हारी जरूरत नहीं! जो तुम्हें दूसरों पर अकारण भौंकने के लिए डिश पेश करते हैं, तुम्हारी जरूरत उनको है परन्तु न उनके पास वर्तमान है न अतीत, न भविष्य। तीनों की दहशत अवश्य है। इसकी व्याख्या करो और उसके बाद मुझसे बात करना।

‘तुमको तो इस मुहावरे के घर और घाट का और इन दोनों के बीच में पड़ने वाले रास्ते का भी अर्थ पता न होगा। घर का मतलब है अतीत, रास्ते का मतलब है वर्तमान, और घाट का अर्थ है भविष्य । पहले हिन्दी सीखो और फिर हिन्दुस्तान सामने होगा और फिर उसके अतीत, वर्तमान और भविष्य को समझ पाओगे।

’तुम्हें पता नहीं है, हिन्दी में हम एक अखबार भी निकालते हैं।‘

’ उसमें तुम हिन्दी का शोषण करते हो, उसकी सेवा नहीं। उसे समझने की कोशिश नहीं। यह उसी तरह का प्रयत्न है जो पादरियों ने भारतीय भाषाओं में अपने विचार का प्रचार करने के लिए किया था, फिर भी उनका योगदान तुमसे कई गुना अधिक है।‘

‘इस पर कल बात करेंगे’, उसने कहा और उठ लिया।