Post – 2016-05-15

जो सच है वहां नहीं है

– कल तुम्हें एक चैनेल में देखा था। तुमसे एक वाक्य से अधिक कुछ बोला ही नहीं गया, जब कि विषय तुम्हारी रुचि का था।
– यह आश्चर्य की बात है कि वह एक वाक्य तुमको सुनने को मिल गया, अन्यथा वह एक वाक्य भी हटा दिया जाना चाहिए था, क्योंकि मेरे विचार उनके कारोबार के हित में न थे। उनके कारोबार को तुम पसन्द करते हो, और तुम्हारा रुतबा देख कर लोग उनके कारोबार में अपनी सोच और समझ भी इनवेस्ट करने लगते हैं।

– सच कहता हूं, मैंने समझा नहीं।

– समझ भी नहीं सकते क्योंकि तुम्हारे लोग जहां से इनाम इकराम जुटाते है, कुर्सियां दखल करते हैं, इस बात की डुगडुगी पिटवाते रहते हैं कि उन्हें कहां कहां से क्या क्याा मिला है, उनके ज्ञान का स्तर या तो यह है कि वे जानते ही नहीं कि जहां जहां से, जो कुछ मिला है, उसके लिए उन्हे क्या देना पड़ा है – तुच्छ के लिए अपना सर्वस्व, नग्न हो जाने की शर्त मानते हुए, या जानते भी है तो मानते नहीं कि उन्होंने कुछ गलत किया है।

– तुम चकरघिन्नी की तरह नाचते क्यों हो, साफ अपनी बात कहते क्यों नहीं। नाम लो।

– साफ कहूं तो मानहानि का केस बन जाएगा। व्यंजना और वक्रोक्ति अलंकार नहीं हैं, लाचारी और जुबांबन्दी में अपनी आवाज लोगों तक पहुंचाने के तरीके हैं, यह दीगर बात है कि अलंकार हमारे हैं, हमने इनका नजाकत से प्रयोग किया, उर्दू के कवियों ने इन्हें खंजर बना दिया।

– जब तुम साफ बात करते हो तब भी बहुत कुछ ढका रह जाता है। बताओगे क्योे।

– बता तो सकता हूं पर आत्मप्रशस्ति के आरोप से विचलित भी होता हूं, डरता भले न होउुं सहमता जरूर हूं। क्या तुम उसे झेल पाओगे।

– अपनी बात तो कहो।

– तो ध्यान दो, मैं जैसा कि कहता हूं, मैं मौलिक नहीं प्रामाणिक होना चाहता हूं, वही बना भी रहा हूं।
– माना।
– 1987 में हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य का प्रकाशन हुआ। उससे पहले छोटे-बडे, परंपरावादी और उपनिवेशवादी सभी अध्येता इस बात पर, बीच बीच में उठाई गई आपत्तियों के बाद भी, सहमत हो जाया करते थे कि संस्क़ृत भाषा और उसके वाहकों का प्रवेश किसी न किसी युक्ति से यूरोप से भारत में हुआ होगा। किसी ने यह नहीं सुझाया या माना था कि हड़प्‍पा सभ्यता ही वैदिक सभ्यंता थी। इसका दावा प्रमाणों के साथ मैंने किया तो इसे दबाने की योजनाएं बनाई गईं। दुष्प्रचार किए गए, और फिर जब उसके पहले खंड का अंग्रेजी में पुनर्लेखन दि वेदिक हड्प्पन्स के रूप में अंग्रेजी में हुआ और यह विश्व बाजार में पहुंचा तो इसके खंडन के प्रयत्न विफल हो गए और उसके बाद ही यह स्वी्कार किया गया कि भारत पर कोई आक्रमण उस कालावधि में हु‍आ ही न था। परन्तु यह अधूरा स्वीकार क्यों। इस बात का स्वीकार क्यों नहीं कि हडप्पाा सभ्यता वैदिक सभ्यता थी और इसकी भाषा, संस्क़ृति और ज्ञानभंडार का प्रसार उस रीति से हुआ जिसका चित्र उस कृति में उपलब्ध‍ है। इस स्थापना को झुठलाने के प्रयत्न‍ उन लोगों द्वारा हो रहे हैं जो साधनो, सुविधाओं, प्रलोभनों और सम्मानों के बल पर बुद्धिजीवियों को खरीदते रहते हैं। अब तुम बताओ, आर्यों को एक रेस सिद्ध करने के लिए कृतसंकल्प वह संचार माध्यम क्या बता सकता है कि उसे किससे कितना कुछ किस रूप में मिला है कि वह उन विचारों को सहन नहीं कर पाता जो उस विचार का खंडन करते हैं जिसके लिए उसने कुछ पाया है। इसका रहस्य मैं बताउूंगा, पर अभी नहीं।