Post – 2016-04-28

जियो और जीने दो

‘यार, जियो और जीने दो’ के इस सूत्र को मैंने सुना तो कई बार है, पर इसका मतलब समझ में नहीं आया। तुम जानते हो?’

’वाक्य तो बहुत सीधा है, इसके एक एक शब्द का अर्थ दूध पीते बच्चे को भी मालूम होगा। तुम क्यों परेशान हो गए।‘

’तुम्हारी वजह से। तुमने जिस दिन याद दिलाया कि शब्दों का मतलब ठीक वही नहीं होता जो कोश में लिखा मिलता है तभी से अब जिस भी वाक्य को सुनता हूं उसका एक नया अर्थ निकलने लगता है।‘

‘मतलब तुम निकाल ही चुके हो। मुझसे क्यों पूछ रहे थे, तुम्हें तो मुझे बताना चाहिए। ’

‘उधर देखो, एक सज्जन योग का प्रशिक्षण दे रहे हैं और दो डंडों के सहारे एक इश्ताहार लगा रखा है ‘जियो और जीने दो।‘ मैंने पढ़ा तो सोचने लगा हमसे कई गुना लंबी सांसे लेते हुए जिधर जी आया अंग प्रत्यंग घुमाते हुए आसन कर रहे हैं। कोई रोकने वाला नहीं। कभी रोका भी नहीं। फिर यह विज्ञापन क्यों ? इसका अर्थ क्या है? तभी मुझे इसका यह अर्थ समझ में आया कि ‘कुछ लोग हैं वे न शान्ति से रहते हैं, न दूसरों को शान्ति से जीने देते हैं।‘ और तब यही वाक्य एक ललकार में बदल गया ‘तुम लोग हमें शान्ति से नही जीने देते इसलिए हम अपने को जिन्‍दा रखने के लिए तुम्हें रास्ते से हटाने को बाध्य हैं। और अब शान्ति, ध्यान और समरसता का यह आयोजन मानसिक रूप से अशान्ति का सन्दे्श देने वाले एक आयोजन में बदला दिखाई देने लगा। इसीलिए तुमसे पूछा कि जो मैंने सोचा वह तुम्हें भी ठीक लगता है या नहीं।‘

यह पहला मौका था जब मैं उसकी सूझ और सोच पर हैरान हो कर उसे इतने सम्मान से देख रहा था। कुछ कहते न बन रहा था, क्योंकि आदत उसकी खिंचाई करने की है और उसका कोई कोण नजर नहीं आ रहा था। कुछ संभला तो तारीफ न करते हुए भी समर्थन तो करना ही था। मैंने पूछा, गणित जानते हो?’

वह मुस्कराने लगा। कुछ बोला नहीं।

बोलना मुझे ही पड़ा, ‘जब तुम सवाल हल कर लेते हो तो तुम्हें पूरा विश्वास होता है कि सवाल हल हो गया। किसी के समर्थन की जरूरत नहीं होती। तुम्हें मेरे समर्थन की जरूरत नहीं है।‘

उसे मुझसे इस उत्तर की आशा नहीं थी। वह सोच बैठा था कि किसी न किसी कोने से टांग अड़ाउूंगा अवश्य। यह सुन कर वह गदगद हो गया और पहले से कुछ अधिक उत्साह में आ गया।

‘फिर मुझे मूल सूत्र का सरल और शिरोधार्य अर्थ समझ में आया, ‘जियो, जिन परिस्थितियों में हो उनमें जीने के लिए जो भी आवश्यक और सुलभ है उसे खा सकते हो तो खा कर जिन्दा रहो और हमे जो रुचता पचता है, हमारी पहुंच में है हमें खा पी कर जीने दो। तुमको यह किसी सिरे से गलत लगता है?’

मैंने पूछा, यह बताओ, तुम सरस्वती की पूजा कब और कैसे करते हो?’

वह समझ नहीं पाया। पूजा करता हो तब तो। मैंने कहा, ‘कभी कभी सरस्वती देवी पूजा पाठ न कर पाने वाले गधों की जबान पर भी आ बैठती हैं और वे उपदेश करने लगते हैं। दध्यंग अथर्वा की जबान पर इसी तरह विराजमान हुई होंगी।‘

वह बैठे बिठाए ही उछल पड़ा और मैंने संभाला न होता तो सीधे नाक के बल गिरता। पर तभी उसे शक हो गया कि मैं उसे चंग पर चढ़ा कर नीचे तो नहीं गिराना चाहता हूं। वह चौकन्ना होता सा लगा । यह शब्द मेरे ध्यान में आया और उसे नीचा दिखाने का कोई मौका मिल नहीं रहा था इसलिए पूछ बैठा, ‘चौकन्ना का मतलब जानते हो?’

ऐसे सवाल की कोई तुक न थी फिर भी कहीं वह निरुत्तर न रह जाय इसलिए उसने कहा, ‘चार कान वाला, अर्थात अपनी श्रवण क्षमता से दूना, अर्थात् अत्यधिक सावधान।‘

इतनी लंबी प्रतीक्षा के बाद मुझे अपनी हीनताग्रन्थि से बाहर निकल कर यह बताने का मौका मिला कि मैं भी कुछ हूं। मैंने कहा, ‘किसी खतरे का क्षीण अन्देेशा होने पर जानवर चौंक कर अपने कान खड़े कर लेते हैं और सारा ध्यान उसे भांपने पर लगा देते हैं। चौंक कर कान खड़ा करने की इस क्रिया से निकला है यह चौकन्ना शब्द, दूसरों का कान काट कर अपने कान में जोड़ने की शल्‍य क्रिया से नहीं।‘

वह मित्र होते हुए भी करबद्ध हो गया, ‘यह तो मेरे ध्याेन में आ ही नहीं सकता था।‘

मेरे अहं की तुष्टि हुई कि मैंने यह भी मान लिया कि कम्युानिस्ट उतने सिरफिरे नहीं होते हैं जो मैं अपनी गणित से उन्हें मान चुका था।

लगता है वह आज पूरी तैयारी करके, किसी से सलाह करके आया था इसलिए उसका एक-एक कदम बहुत नपे तुले ढंग से पड़ रहा था। उसने पूछा, ‘यह बताओ, खानपान के सवाल पर जो विवाद छिंडा, उसमें असाधारण संयम का परिचय देते हुए मोदी स्वयं चुप रहे। न बोलने वालों को रोक सके न झेले जाने वालों को दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंक सके । इसका रहस्य तुम्हें पता है?’

यह भी पहला ही मौका था जब मुझे स्वीकार करना पड़ रहा था कि कुछ बातें मुझे भी नहीं मालूम।‘ उसने कहा मालूम तो तुम्हें है पर कहने का साहस नहीं है। बुरा मत मानो तुम जिनके साथ हो वे सेवर दिमाग के लोग हैं और उनकी संगत में तुम्हारा दिमाग भी सेवर हो चुका है। सेवर का मतलब जानते हो? नहीं जानते तो कोई क्षति नहीं। मैं बताता हूं। अंग्रेजी में इसे हाफ बेक्ड कहते हैं।‘

उसे दबोचने का एक नया मौका मिल गया, ‘हाफ बेक्ड् नहीं, अंडर फायर्ड। यह जानो कि अधपके के लिए वस्तु भेद से अलग अलग विशेषणों का प्रयोग होता है।‘
वह इतनी विनम्रता से मेरी बात से सहमत हो गया कि मुझे आश्चर्य हुआ। परन्तु उसे तो अपने विचार के लिए मेरे मन को पिघलाना था। वह अपनी योजना पर अचूक काम कर रहा था। उसने मुझे घेरा तब मुझे उसकी व्यूह रचना का आभास हुआ। उसने कहा, जानते हो मोदी की चुप्पी के पीछे का सच?’

मैं चुप उसे निहारता रहा।

वह बोला, ‘इसलिए कि मोदी गुजरात के दस साल तक मुख्य मंत्री रहे। अपनी राज्य सीमा से बाहर गुजरात अपने पशुधन की श्रेष्ठता के कारण जाना जाता रहा है। गुजराती गाय, गुजराती भैंस, गुजराती सांड, गुजराती बकरी ।‘

मुझे टोकने का छोटा सा अवसरफिर मिला, ‘भैंस हरयाणवी और बकरी राजस्थानी अर्थात् उसके बांगर क्षेत्र की बागड़ा छेर।‘

वह मेरे इस विचार से भी पूरी तरह सहमत हो गया, पर बोला, ‘तुमको पता है मोदी ने निर्वाचन अभियान के दौर में एक झूठ बोला था, श्वेत क्रान्ति के स्थान पर कांग्रेस राज में लालक्रान्ति को बढ़ावा मिला है। मैं याददाश्त से बोल रहा हूं शब्दों में कुछ हेर फेर हो तो बताना। पर वह जानते थे कि उसी गुजरात में जिसे श्वेत क्रान्ति या अधिकतम दूध उत्पा‍दन का श्रेय है उसी में अंतरराष्ट्रीय स्तर को छूने वाले बूचड़खाने भी बने हैं, और उसी से सबसे अधिक गाेमांस का निर्यात होता रहा है और आज भी हो रहा है।’

मैं पुन्‍: चौंक कर देखने लगा तो बोला, ‘मोदी की अन्तरात्मा का आदर करता हूं। इस एक कथन के अतिरिक्त उस आदमी ने कोई दूसरी चूक नहीं की। पर इस मामले में उसके अपनों के बीच उसके विरोधी ही भरे थे। ‘

उसकी भूमिका का लक्ष्य मेरी समझ में नहीं आया तो कहा, ‘दुर्बोध बातों के लिए तुम मुझे दोष देते रहे हो, अब तुम स्वयं उनका सहारा ले रहे हो।‘

उसने कहा, ‘मैं तो तुम्हारी सीख ही तुम पर आजमा रहा हूं। तुमने कहा भावना का भी एक अर्थशास्त्र होता है और इसे हम कम्युनिस्टों ने नहीं समझा तो मैं तुमसे सहमत हो गया था। इसका पालन जिन्हें हम भाववादी कहते आए थे उन्होंने हमसे अधिक दृढ़ता से किया है इसे भी मान लिया। इस अर्थशास्त्रीय नैतिकता को भी समझ गया जिसका कांटा लाभ के अनुपात के साथ बदलता रहता है। सच यह है कि आज का अर्थशास्त्र उन्हीं शाश्वत नियमों पर चल रहा है जिसका हवाला शतपथ ब्राह्मण को याद करते हुए तुमने दिया है।

‘मोदी को मैं इस बात का श्रेय देता हूं कि उस एक विचलन के अतिरिक्त मुझे अपने प्रयत्न के बाद भी कोई दूसरा नमूना न मिला कि उसे गलत मान लूं। वह अपने वायदे निभाने के लिए देश की नींद जागता और देश की नीद सोता है और देश के उज्‍वल भविष्य के सपने देखता है।‘’

मैं उसके मा‍नसिक परिवर्तन पर स्वयं इतना चकित था कि उसे अपने विचारों में बदलाव लाने के लिए धन्यवाद तक न दे सका कि वह बोल पड़ा, मोदी को मालूम है कि श्वेत क्रान्ति रक्त क्रान्ति से जुड़ी हुई हैा अर्थशास्त्र पूछता है गाय से बछड़ा पैदा न होने का कोई तरीका हो तो उसे देश को बताओं। बछड़ों का कोई भी उपयोग उस व्यवस्था में रह गया हो तो बताओ जिसमें खेती हल आधरित न रह कर ट्रैक्‍टर आधारित हो गई है। जिस गुजरात से दूध दूसरे राज्यों को निर्यात होता है, उसमें बछडों का क्या होता है, यह तो पता लगाओ। इन बछड़़ों को बचाने का आर्त नाद शतपथ में मिलता है, उस समय की अर्थव्‍यवस्‍था के कारण। आज तुम मुझसे पूछो कि इन बछड़ों को किसने मारा तो उत्तर होगा हल आधारित खेती से ट्रैक्टैर आधारित खेती में बदलाव ने। इस प्रक्रिया को उलट सको तो हम तुम्हारे साथ है, इस विवशता को स्वीकार कर सको तो भी हम तुम्हारे साथ है?

वह उत्‍साह में अस्थिर हो गया। संभला तो दो प्रश्न कर बैठा:
1. तुमने ही कहा था कि जो लोग सुनियोजित रूप में कोई ऐसा काम करते हैं जिससे राष्ट्रीय जन-धन की हानि हो वे राष्ट्रद्रोही हैं। अब तुम बताओं, अकारण, हमारी चेतना को प्रभावित करने वाले, शान्ति और व्यव्था ही के लिए संकट पैदा करने वाले उन लोगों को राष्ट्रद्रोही कहना ठीक होगा या नहीं जो करते सब कुछ निरामिष लगने वाला ही है पर उसके परिणाम विषप्रचार में सहायक होते हैं और उनके अलक्ष्‍य ताप का जब भी उन्मोचन होता है, वह अनिष्टकारी ही होता है।‘
यह भी पहला ही अवसर था जब मैंने नरम पड़ते हुए उससे कहा, ‘सभी प्रश्नों का उत्तर क्या इतना रटा-रटाया होता है कि अगले ने प्रश्न किया और आप ने गोली मारने वाली तेजी से जवाब दे दिया।‘

‘कल बात करेंगे। उसने बड़े आत्मविश्वास से कहा और उठ कर चला तो रोज की ही तरह पर मुझे लगा आज वह कुछ अकड़ता हुआ चल रहा है।