Post – 2016-04-25

जिधर देखते हैं उधर तू ही तू है

‘क्या तुम अनुप्रास प्रेम के कारण कमीनेपन को कमाल की ऊंचाइयों तक पहुंचाने की बात कर रहे थे या इसमें कोई सोच और सूझ भी थी.’

‘यदि इसका भाष्य करना पड़े तो मैं समझूंगा मैं एक ऐसे समाज से रू-ब-रू हूँ जो अपनी चेतना और संवेदना खो चुका है और पैना लगाने पर ही चेतता है और जल्दी जल्दी आगे बढ़ता है और फिर थथमथा जाता है जैसे पैने की आदत पड़ गई हो.’

उसके चहरे की भंगिमा से लगा उसकी समझ में बात नहीं आयी.

मैंने पूछ, ‘पैना का मतलब जानते हो?’

बोला, ‘जानता हूँ, जानूंगा क्यों नहीं : नुकीला, तेज़, धारदार.’

मैंने कहा, ‘ ये तो विशेषण हुए. मैं संज्ञा की बात कर रहा था. अंग्रेजी में जिसे गोड कहते हैं वह । इसके कई रूप होते हैं. जिसको स्त्रीलिंग में पशुसाधनी (सटाकी) कह सकते हो और पुल्लिंग में अंकुश, प्रतोद, अष्ट्रा आदि. हाथी, घोड़े, और बैल के लिए उसके नाम और बनावट और उपादान में अंतर होता है।

ये सारे उपकरण, घोड़े के लिए कशा भी वैदिक काल से चले आ रहे हैं। पशु सम्पदा के मामले में भी बहुत समृद्ध था वैदिक समाज. यह गाय चराने वाला जत्था नहीं था। भेड़, बकरी,, गाय-बैल, ऊंट, गधा, घोडा, भैंस और हाथी तक पालने और उपयोग में लाने वाले समाज को कमीनों ने अपने को अधिक सभ्य सिद्ध करने के लिए असभ्य , बर्बर और दरिन्दा सिद्ध करने की ठान ली थी और इसी इतिहास से तुम्हारी अतीत और वर्तमान की समझ पैदा हुई थी इसलिए इसमें अनुप्रास दिखाई दिया, यथार्थ नहीं, जिसके उदाहरण जिधर भी निगाह डालो मिल जाते हैं। अपने इस झूठ को वे तब भी दुाहराते रहे जब मैंने जीवन के एक एक पक्ष को लेकर यह प्रमाणित कर दिया वैदिक समाज अपने समय की अन्य सभी सभ्यताओं से अधिक विकसित और प्रबुद्ध था और इसमें, वर्गभेद, वर्णभेद, पितृ प्रधानता आ चुकी थी. पर सत्ता के साधनों और संस्थाओं पर अखण्ड अधिकार के बल पर उजागर हो चुके सच को दबाने और झूठ को इतिहास का सत्य बनाने पर लगातार जुटे रहे और आज भी किसी न किसी बहाने इसे दुबारा चर्चा में लाने की कोशिश करते हैं। तुमने भी सुना होगा वैदिक समाज की तुलना आइएस करने वाले को । अपने इसी कमाल के बल पर वह आज भी तुम्हारे सिर चढ़़ कर बोलने लगता है। ऐसे लोगों के लिए राही मासूम रज़ा के आधा गांव की भाषा में जो सही शब्द बनाता है उसके उच्चारण के साथ मेरी ज़बान ऐंठ जायेगी. इसलिए घुमा कर कहना पड़ा, कमीनेपन को कमाल की ऊंचाइयों तक पहुंचाने का सच.’

‘कमाल की आत्मविचलन है यार, बात वर्तमाम की हो रही थी और तुम पांच हज़ार साल गहरा गोता लगाकर उसे समझने और उसकी आड़ में अपने को सही साबित करने की कोशिश में जुट गए।‘

’मैंने इतिहास को ध्यान में रख कर नहीं कहा था यह वाक्य । इतिहास की ओर तो तुम्हारी नासमझी के कारण जाना पड़ा और उस इतिहास से वह पैने वाली बात तो धरी ही रह गई। ऋग्वेद में पैने को अष्ट्रा् कहा गया है। यह बांस या लकड़ी का चिकना सा डंडा होता है जो बैलगाड़ी हांकने वाले के हाथ में होता है और बैल जब सुस्त् पड़ जाते हैं या आगे बढ़ने से कतराने लगते हैं तब इसका इस्तेमाल उसे करना पड़ता है, पर यह न बताउूंगा कि कहां, नहीं तो बुरा मान जाओगे। उसी प्रसंग में यह याद आ गया कि कितने हजार साल से यह काम में आ रहा है और फिर क्षोभ में उस सन्दर्भ में जारी रखी जाने वाली कमीनगी का कमाल भी याद आ गया।

‘कल जब बात कर रहा था तो जल संकट के सन्दर्भ में याद आया दस पन्द्रह साल पुरानी नदियों को जोड़ने की वह योजना, जिसकी व्यावहारिकता पर वाजपेयी सरकार ने काम करना आरंभ किया था और उनको इसके आरंभ का श्रेय मिलता इसलिए उसके बाद इस पर काम ही बन्द कर दिया गया और वह धन जो देश के विकास पर लगना था विदेश भेजा जाने लगा।

‘बाजपेयी ने सड़क मार्ग से पूरे देश को जोड़ने और यातायात की सुविधा बढ़ाने की योजना पर तेजी से काम करना आरंभ किया था और इसके सपने में वह इतने गदगद हो गए थे कि कार्यकाल पूरा करने से पहले ही चुनाव करा बैठे और एक तकनीकी तिकड़म के चलते परदे के पीछे चले गए। उसके बाद उस योजना को रोक दिया गया। हजारों करोड़ का धन जो उस पर खर्च हो चुका था वह बेकार कर दिया गया क्योंकि उसका श्रेय भाजपा सरकार को मिलता।

‘आज भी आए दिन यही किया जा रहा है कि हमने नहीं किया और तुम्हें कुछ करने न देंगे और खुलेआम विघटनकारी तत्वों को शक्ति और साधन देकर खुराफात के लिए उकसाया जा रहा है। जाटों को उकसा कर जो उपद्रव कराया गया था उसे किसने इसे भड़काया था यह तो संचार माध्यमों को भी पता चल गया था परन्तु उसके पीछे कांग्रेस का हाथ था इसलिए उसकी एक बार चर्चा हो कर उससे सभी चैनेलों ने आख फेर ली थी। इसकी तुलना किसी छोटी से छोटी घटना से करो जिसकी आड़ में मोदी को घेरा जा सकता हो तो उसे कितने विस्तार से, कितने दिनों तक, कितने बहानों से,चर्चा के केन्द्रा में रखा जाता है, यह उदाहरण दे कर समझाने की चीज नहीं है। यह किसी एक कार्य या घटना से जुड़ी पीड़ा नहीं थी। यह एक राष्ट्रीरय व्यातधि का रूप ले चुका है। जिधर निगाह डालो नमूने मिल जाते हैं।‘

‘मेरी एक बात मानोगे। मान लो। तुम अपनी बेल्ट लाइन बता दो, कल मैं तुम्हाारे लिए एक निकर बनवा कर लाता हूं, अरे, अब तो निकर से काम चलेगा नहीं, दुनिया के सामने नंगे हो गए तो फुल पैंट की सूझी, चलो वही सही। यह मेरी तरफ से भेट रही परसों से तुम जो कमी रह गई है वह भी पूरी कर दो। शाखा में जाना शुरू कर दो।

‘सभी जानते हैं तुम्हा।रे पास हराम का बहुत सारा पैसा है जिसे तुम कहीं भी बहा सकते हो। लेकिन लोगों को तुम्‍हारी सिलाई पैंटों और फुलपैंटों की जरूरत नहीं पड़ रही है। तुम्‍हारी देशद्रोही गतिविधियों और देशद्रोहियों को शहीद बनाने की तुम्हा री कोशिशों से बिदक कर लाखों लोग तुमसे किनारा कसते जा रहे हैं और शाखा तक न भी पहुंचे पर उनकी सोच तक पहुंचने लगे हैं वर्ना संघ को अपने स्वयंसेवकों की संख्या में तेजी से हो रही बृद्धि डंके की बात चोट पर न बतानी पड़‍ती और तुम्हें चोर की मां की तरह छिप कर रोना न पड़ता।
अब तो अपने उजड़े घर में रोने वाला भी तू है और उनके भरे मजमे के बीच ढोल बजाने वाला भी तू है। सभी को साथ बुला रहे हो मिल कर रोने के लिए कि शायद उस स्‍यापे पर ही जनता पिघल जाय। यह क्‍या अकेले उनके करने के वश का काम था। अपना काम छोड़ कर उनका ही काम तुम अरसे से करते आ रहे हो। तुम्‍हारा काम तो तमाम होना ही था।