Post – 2016-04-15

बूमरैंग

‘तुम्हारी बातें कुछ देर से समझ में आती हैं, तुमने ठीक कहा कि कई बार शब्दों का अर्थ उल्टा भी होता है, या उल्टाे ही होता है। जैसे तुम्हारे मामले में मार्क्सवादी का अर्थ संघ का चमचा भी होता है।‘

’जब एक शब्दा को समझने में तुम्हें इतना समय लगा तो मेरे सरोकार को समझने के लिए तो युगों की जरूरत पड़ेगी। मैंने कहा था कि एक सच्चे लेखक का काम है सताए हुए, दबाए जा रहे लोगों के पक्ष में खड़ा होना और इसलिए मैं उनका पक्ष लेने या उनका प्रवक्ता बनने को नैतिक रूप में बाध्य थ जिनपर बु‍द्धिजीवियों की अक्षौहिणी लगातार प्रहार कर रही थी और वे बेचारे ठीक से कराह तक नहीं पाते थे क्‍योंकि उस कराह को सुनने वाला कोई था ही नही। वह तुम्‍हारे हंगामे में दब जाती थी। सताए हुए का साथ देना एक लेखकीय दायित्व है और एक मार्क्सवादी दायित्व भी। दुर्भाग्य से इस इतने बड़े देश में अपने को कम्युनिस्ट कहने वाले हजारों होंगे पर मार्क्सवादी मैं अकेला बचा रह गया हूँ और वह भी तुम्हारे मिटाने की लाख कोशिशों के बाद भी। तुम जानते हो तुम्हारी समस्याा क्या है?‘

’अच्छी तरह जानता हूँ। मेरी सबसे बड़ी समस्या तुम और तुम जैसे लोग हैं जो कहने को हमारे साथ हैं और रहने को हमारे दुश्मनों के साथ, इन्हें हमारे यहॉं ब्लैकशीप या भेड़ की शक्ल् में उन्हीं के झुंड में छिपा हुआ भेडि़या कहा जाता है और उनसे मुक्ति पाना हमारी सबसे बड़ी और सनातन समस्या रही है।‘

‘मैंने कभी नहीं कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्‍हारे झुंड में तो एक मेरा दब घुट जाता है। तुम लोग मार्क्सवादी उद्धरणों की जुगाली करने वाले और इस जुगाली के क्रम में ढेर सारा झाग गिराने वाले अवसरवादी ऐयाश हो और लंबे अरसे से एक ही जगह ठहरे हुए लोगों की जमात हो जिनकी न आपस में पटती है न दुनिया जहान से पटती है, और जो मार्क्‍सवादी विश्लेषण की युक्ति और शक्ति दोनों से रीते हैं। तुम मुझे तक नहीं समझ सकते जिससे तुम इतने डरे हुए हो कि मुझसे ही छुट्टी पाना चाहते हो। फिर भी तुम्हारी समस्या यदि यही है तो उससे तो चुटकी बजाते छुटकारा पाया जा सकता है। तुम मुझ पर उसी हथियार से चोट करो जिससे मैंह तुम्हा्रे उूपर प्रहार करते हुए तुम्हें भेड़ों की खाल ओढ़े भेडि़यों का झुंड साबित कर देता है।‘

’इसका मतलब है हम तुम जैसों को भी भाव दें और तुम उसे चरित्र प्रमाणपत्र की तरह दूसरों को दिखाते फिरो।‘

’तुम जिस आदमी को सबसे बड़ी समस्याा मानते हो उसी को भाव नहीं देना चाहते। विचित्र है। मुहावरे में सुना था कबूतर बिल्ली से डर कर ऑंख मूँद लेता है कि वह उसे देखेगा नहीं तो वह गायब हो जाएगा। शुतुरमुर्ग के बारे में भी कहावत इससे मिलती जुलती है। तुम जिससे इतना डरे हुए है उसे देखने और जांचने तक का साहस नहीं जुटा पाते। ऐसे लोगों को मार्क्रवादी परिभाषाकोश में क्या कहते हैं, कभी पता किया है? देखो, मैं तुम्हारी आलोचना इसलिए करता हूँ कि तुम मार्क्वाद के शत्रु हो। तुम अपनी काबिलियत पर इतना भरोसा करते हो कि अपने को समझा लेते हो कि तुम अपने बुद्धिबल से सचाई को इस तरह परिभाषित करोगे जिससे जो नहीं है वह उपस्थित हो जाएगा और जो है वह हवा हो जाएगा। आपसी सहमति और सहानुभूति इतनी जबरदस्त कि एक बेवकूफी करे तो उसे ही समझदारी का नमूना मान कर सभी उसी के साथ हो लेते है और मान लेते हैं कि पूरी दुनिया इसका कायल हो गई। तुम्हारे हलके से बाहर दूसरों को तुम्हारी उन्हीं बातों पर लोगों को इतनी हँसी आती है कि उनका पीआरपीएम बढ़ जाता है।‘

’यह पीआरपीएम क्यान बला है भाई।‘
’पल्स‍ रेट पर मिनट।‘
उसे ठहाका लगाना ही था।

’सुनो, यदि मार्क्मवादी हो तो सचाई को देखने, समझने में ईमानदारी से काम लो। तम्‍हारे बुद्धि बल के चलते तुम्‍हारी साख घट गई है। तुम्‍हारी सबसे बड़ी समस्‍या अपनी विश्‍वसनीयता अतर्जित करने की है। तुुम्‍हारी गिरावट के साथ बुद्धिकौशल पर तुम्‍हारा आत्‍मविश्‍वास इस तरह बढ़ता गया है कि आत्महत्या को हत्या सिद्ध कर देते हो। आत्महत्या को इतना जरूरी काम मान लेते हो कि घूम घूम लोगों को समझाना शुरू कर देते हो कि हर घर में आत्महत्या करने वाला पैदा होगा। देश को तोड़ने की बात करने वालों की जमात को क्रान्तिकारी बना देते हो, भगत सिह का सम्मान करने का अनोखा उदाहरण पेश करते हुए उन्हें इन सिरफिरों का नायक बना देते हो। इस खयाली बहक को तुम मार्क्सवाद कहते हो, मैं मार्क्सवाद को इस एड से बचाना चाहता हूँ जो अब तुम्हें मेरिका से भी मिलने लगी है, और जिसने तुम्हारी प्रतिरोध क्षमता को नष्ट कर दिया है और तुम बिना किसी के मारे मरते जा रहे हो।यद्यपि मैं मानता हूँ यह देश के हित में है। मैं बार बार तुम्हें सचेत तो कर सकता हूँ परन्तु न तो तुम्हारे साथ हो सकता हूँ न तुम तब तक हमारे साथ आ सकते हो जब तब तुम्हारी इम्यून प्रणाली दुरुस्त नहीं हो जाती। मैं तुम्हारा हितैषी हूँ, पर सहचर नहीं।‘

‘तुम किसके हितैषी हो और अगर तुम्हारे इरादे सफल हुए तो इसका क्याकुप रिणाम होगा यह तुम्हारे बताए बिना भी सब पर प्रकट होता जा रहा है। इसलिए अब आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी। या तो हमारा देश रहेगा या तुम्हारा हिन्दुत्व का एजेंडा।‘

’तुम्हेंम पता है हिन्दुुत्व के दो ऐजेंडे हैं, एक पर तुमने काम किया है और उससे भारी अनर्थ हुआ है, दूसरे पर वे जिन्हेंं तुम अपना दुश्मन समझते हो। तुम्हारे पास अक्ल मंदों की भारी जमात है, पर बेवकूफी के सबसे अधिक काम तुमने ही किए है, उनके पास सिरफिरों की वैसी ही जमात है, लेकिन उनसे देश बहुत कम अहित हुआ है। तुम हिन्दुओं के सरोकारों की उपेक्षा करते हो, हिन्दुत्व को जा जा कहते हुए उभारते हो, वे उन उपेक्षाओं की याद दिला कर तुम्हारी असलियत उजागर करते हैं और हिन्दू आ आ कहे बिना भी जिसे तुमने भगाया था उसे अपना बनाते जाते हैं। तुम निगेटिव सजेशन से उसी मुद्दे को केन्द्रीय बनाते हो, वे आटो सजेशन से उसको केन्द्र में रखते हैं। तुम सांप्रदायिकता की जमीन तैयार करते हो वे उसमें फसल उगाने को तैयार रहत हैं । बहुत हाल में उन्होंने सोचा और अपने को बदला कि इसकी जरूरत ही नहीं है और अपना दायरा बढ़ा कर सबका साथ और सबका विकास की बात करने लगे।‘

’परले सिरे के उूत हो तुम तो, यह भी समझ में नहीं आता कि इसके पीछे क्या है? उनके छिपे इरादे क्याा है?‘

’उनके इरादे भांपने से पहले यह तो बताते कि तुम्हारे इरादे क्या है। यह तो देखते कि उन्हों ने अपने को नयी परिस्थितियों के अनुसार समायोजित किया है या करने का विश्वास पैदा किया है और इस तरह वे अपनी पहली जकड़बन्दी से आगे बढ़े हैं और तुम अपने को जिन्दा रखने की जीतोड़ कोशिश में उनके पीछे लगे हो जिनका नाम और कारनामा दोनों उस अवस्थाऔ से बहुत गर्हित हैं जब तुम उनका जी जान से विरोध करते थे। अपना आकलन करो कि तुम आगे बढ़े हो या पीछे लौटे हो। आज की तारीख में प्रगतिशील भूमिका किसकी है, उनकी या तुम्हारी। कौन अधिक कारगर हथियार से लड़ रहा है। तुम जिन पर आरोप लगाते थे कि ववे लट्ठ चलाते हैं वे संचार की ताकत को समझ कर उसका भरपूर उपयोग कर रहे हैं और तुम बन्दू क से बूमेरैंग पर पहुँच गए हो जो निशाने पर लगे या न लगे उलट कर चलाने वाले को चोट अवश्‍य दे जाता है। कम से कम मुहावरे में। 15/4/2016