12.4.16
आम का मतलब खास होता है
कोश में आपको आम मतलब एक फल मिलेगा जो उस आम से अलग, यद्यपि ध्वानि में सर्वसदृश है जिसका अर्थ साधारण मिलेगा। एक दलित और उपेक्षित व्यक्ति की गणना आम लोगों में नहीं की जा सकती, और जब कोई इस नाम का एक दल बन जाने के बाद अपने को आम आदमी कहता है जो वह अपने को एक खास दल से जुड़ाव रखने वाला होने का दावा करता है। जिस झाडू को आम ने अपना चिन्हे बनाया उसे अपने जीवन में उठाने वाला आम आदमी नहीं है, वह आम लोगों से कुछ नीचे पड़ता है। मोटे तौर पर आम जन का अर्थ मध्यवित्त जन है और अब तो आम से जुड़ने वाले सम्पंन्न जनों की कोटि में आ चुके हैं।
अभी हाल में एक महामारी चली है जिसमें बात बे बात आदमी वन्दे़ मातरम् या भारत माता की जय बोलने लगता है या मर जाऍंगे पर ऐसा बालूँगा नहीं की घोषणा करने लगता है। मुझ याद नहीं मैंने आज से कितने साल पहले वन्दे मातरम् या भारत माता की जय बोला हो। जिसकी स्पुष्ट याद है वह उस समय की है जब मैं छह साल का रहा होउूँगा। 1937 के चुनाव के पहले का जिसमें प्रभात फेरी करते हुए गॉंव के नौजवान भारत माता की जय बोल रहे थे और उससे उस शैशव में ही मन पर उस आवेश का और उसकी ध्वनि का असर हुआ था जो आज भी मन में सनसनी पैदा कर देता है, परन्तु न तो मेरी आयु उस जुलूस के साथ चलने की थी न ही मैंने भारत माता की जय बोला होगा। आप याद करें, सच्चेे मन से आपने वन्दे मातरम् कब बोला था, किस सन्दर्भ में या भारत माता की जय कब बोला था। मेरा आशय वन्दे मातरम् गान से नहीं है जिसे लता की आवाज ने आत्मा से उठती आवाज बना दिया है। उसे सुनते हुए मैं विभोर हो जाता हूँ। आवाज उतनी मधुर नहीं है इसलिए गाता नहीं, केवल सुनता हूँ और झूम उठता हूँ। यह तय करना कठिन है कि शब्दों के जादू पर या स्वर और संगीत के जादू पर या दोनों पर।
इस गान में ‘के बोले मा तूमि अबले’ का मतलब यह नहीं है कि वह अबला नहीं है, अपितु कहीं गहरे मन में यह ग्रथि बनी हुई है और इससे बाहर आने की विकलता है। जै बजरंग बली या अल्लाहो अकबर का मतलब बताने की जरूरत नहीं। इसमें न तो बजरंगबली के प्रति श्रद्धा का भाव है न अल्ला्ह की महानता का स्वीकार। हमला करने या मुकाबला करने का अवश्य है। युयुत्सा को विवेक पर हावी करने की योजना अवश्य है।
शब्दों का अर्थ उनके निरपेक्ष अर्थ से जो कोशों में मिलता है बहुत अलग होता है। यह भिन्न अर्थ उस काल, व्यक्ति, श्रोता, वक्तां, सन्द र्भ सभी की घुली रंगत से पैदा होता है। इसलिए वन्दे मातरम् का अर्थ मातृभूमि की वन्दना ही नहीं होता। कोई मुझसे कहे बोलो वन्दे मातरम् या भारत माता की जय तो मैं नहीं बोलूँगा। उसे अकारण या बिना किसी प्रसंग के बोलते सुनूंगा तो आश्चतर्य से उसे देखूँगा कि इसे हो क्या गया है। बिना औचित्य के कोई भी शब्द या कार्य मानसिक असन्तुलन का प्रमाण है।
किसी दूसरे के आदेश से कोई ऐसा काम करना जिसकी तलब अपने भीतर से न उठ रही हो, नैतिक और बौद्धिक पतन का प्रमाण है। मैत्री, प्रेम जैसे आह्लादकारी संबंध भी किसी दूसरे के आदेश पर नहीं स्थापित किये जा सकते। मुझे अपनी पत्नी या अपने बच्चों या दोस्तों से कभी यह नहीं कहना पड़ा कि मैं उन्हें प्यार करता हूँ। जहॉं आत्मीयता न हो वहॉं इसकी जरूरत पड़ सकती है। मुझे पिता जी को या मॉ को प्रणाम कहना नहीं पड़ा, चरणस्पतर्श करते हुए भी। जिनका आदर करता हूँ उनमें से किसी से नहीं कहा कि मैं उनका आदर करता हूँ। यह मेरी अपनी बात है, हो सकता है आप भी ऐसा ही करते हो, और यदि न करते हों तो सोचिए कि आप को कह कर अपना मनोभाव क्यों बताना पड़ता है।
सच तो यह है कि वे लोग जो औचित्य के बिना भारत माता की जय या वन्दे मातरम् स्वयं भी बोलते हैं उनमें देशप्रेम नहीं होता। देश से प्रेम करने वाला देश में शान्ति, सुख और समृद्धि की कामना करेगा, उस दिशा में प्रयत्नशील होगा और फिर उसका प्रयत्न ही एक शब्दातीत वज्रलेख बनता चला जाएगा उसके प्रयत्न की गहनता के अनुपात में। औचित्य् के बिना, किसी इतर इरादे से इनको नारों की तरह प्रयोग करने वाला अशान्ति पैदा करना चाहता है, सुख और समृद्धि के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों में बाधा पहुँचाना चाहता हॅ। वह अपने स्वार्थ के लिए देश का अहित करना चाहता है। यदि सचमुच किसी को देश छोड़ कर कहीं जाना पड़े तो सबसे पहले ऐसे लोगों को चले जाना चाहिए । ये समाज के उूपर भार तो पहले से रहे हैं क्यों कि बिना कोई उत्पाादक काम किए माल असबाब जोड़ते रहे है, अब समाजघातक भी बन चुके हैं।