Post – 2016-03-28

हिन्दी का भविष्य‍ (18)

‘’यदि तुम सचमुच रुकावटों को समझना चाहते हो तो, सबसे बड़ी रुकावट तुम हो, तुम जैसे लोग जो हिन्दी के नाम से घबरा जाते हैं। हिन्दी में ढाई अक्षर हैं। इसे वे अठारह बना कर हिन्दीहिन्दूहिन्दुास्तान पढ़ते हैं और उनके सामने राष्ट्रवाद का खतरा दिखाई देने लगता है। ये फिकरे गढ़े किसने हैं, कब गढ़े यह भी तुम्हें भूल जाता है क्योंकि तुम उनमें ही गर्क हो गए इसलिए तब से आज तक तुम्हारी भूमिका तोड़ने और बिगाड़ने की रही है, अपने आप तक को तोड़ने और मिटाने की । तुमने जो कहा है ठीक उससे उलट काम किया है। दावा मजदूरों और गरीबों की भलाई का करते रहे और काम उपनिवेशवादियों का करते रहे; जो सपने दिखाते रहे हैं उन्हीं को रौंदने के कारनामे करते हैं। समझदार इतने कि इसका इल्म तक नहीं।‘’

मिटटी के घड़ों की तरह टकराते, और टूटते हुए लुढ़कते रहे हो और इसी को प्रगति कहते हो। दुर्गति की इतनी सुन्द र परिभाषा तो कहीं देखी ही नहीं। तुम दूसरों को फासिस्टग कहते हो और स्व्यं फासिज्मप और नाजिज्मद के औजारों का इस्ते माल करते आए हो। साधनों की पवित्रता पर विश्वािस न होने के कारण तुम भ्रष्ट से भ्रष्ट संगठनों से समझौता कर सकते हो और भ्रष्टहता में उनसे बहुत पीछे रहने के कारण उनसे जुड़ने पर भी उनकी दुम बन कर ही लहरा सकते हो।‘’

‘’फासिज्म और नाजिज्म़ में तुम क्या फर्क देखते हो?’’

‘’तुमने गलत सवाल किया। पूछना चाहिए था फासिज्म्, नाजिज्म और कम्युनिज्म में क्या समानताऍं देखते हो और इनमें क्या भिन्नताऍं हैं कि इनके तीन नाम हैं?’’

‘’अरे यार, चलो यही सही’’ उसने मजा लेते हुए कहा।

‘’समानता यह है ये तीनों पूँजीवाद और उसके विस्तार और उस क्रम में होने वाले कदाचार के प्रति विक्षोभ के तीन रूप हैं। तीनों न्याय और औचित्य की अवैज्ञानिक समझ पर आधारित है। अन्तर यह कि फासिज्म का बल राष्ट्रीय अनुशासन और सैन्यैकरण पर था। तुम्हें याद हो या न याद हो, हमारे समय में स्वतन्त्रता के बाद छात्रों में अनुशासन और सैन्यक करण का एक अभियान चलाया गया था। एक का नाम था प्रोविंशियत कैडेट कोर और दूसरे का नेशनल कैडेट कोर, जिन्हें हम PCC और NCC के नाम से जानते थे। प्रलोभन यह था कि यदि तुम़्हारे पास इसका प्रमाणपत्र होगा तो तुम्हें नौकरी में कुछ सहूलियत मिल जाएगी। मैं PCC में था, यार याददाश्तम इतनी कमजोर हो गई है कि इसका कोई और नाम रहा हो तो मैं इस सीमा तक अपने कथन में अदल-बदल कर लूँगा पर इस योजना और इसके पीछे की मानसिकता पर नहीं। मुझे इस बात की ग्लानि थी कि हमारे स्कूल में NCC का आयोजन क्यों न था। कारण NCC को सुविधाऍं अधिक दी जाती थीं जिनसे हमें ईर्ष्या थी । मुझे उस सर्टिफिकेट के लिए दो साल तक कवायद करनी पड़ी, उसे पास भी किया पर जीवन में उसका कोई उपयोग न हुआ। यह समय 1951-53 का है। नेहरू जिन्हों ने सुनते हैं मुसोलिनी से मिलने से इन्कार कर दिया था, उनके ही शासन में हमें मुसोलिनी के फासिस्ट आदर्शों के अनुसार प्रशिक्षित किया जा रहा था। पता नहीं मुसोलिनी ने अनुशासन और सैन्य‍ प्रशिक्षण के लिए किन्हीं प्रलोभनों का प्रयोग किया था या नहीं।‘’

‘’किया होगा, न किया हो तो दहशत का सहारा लिया गया होगा।‘’

’ठीक कहते हो। मैं तुम्हें केवल यह याद दिला रहा था कि इतिहास के विविध चरणों पर उन्हीं शब्दों और प्रत्येयों के अर्थ बदलते रहते है और एक ही समय में अलग अलग हितों से जुड़े लोगों के लिए भी अर्थ भिन्न भिन्न होते हैं। उसी मुसोलिनी से नेहरू ने मिलने से इन्कार कर दिया था। उसी से रवीन्द्रनाथ और गांधी मिलने पर अपने देश को एक अनुशासित देश में ढालने के लिए उससे प्रभावित हुए थे और नेहरू के समय में ही, स्वतन्त्राता के ठीक बाद हमारी शिक्षा प्रणाली छात्रों को फासिस्ट सॉंचे में ढाल रही थी। और इसी फासिज्म को दूसरे विश्व युद्ध के बाद एक गाली में बदल दिया गया। यह कम मजेदार तो नहीं कि आप फासिज्‍म से नफरत भी करते हैं और उसी पर चलने का प्रयत्‍न भी करते हैं।‘’

‘और नाजिज्म ।‘’

‘’करेले के बारे में एक मुहावरा है, एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा। फासिज्म जातीय संहार और अपने ही समाज के अरक्षणीय लोगों के संहार की क्रूरताओं को ढकने के लिए विचार, संचार और मनोरंजन के सभी साधनों पर एकाधिकार करके गलत को सच और सच को गलत सिद्ध करने की कवायद है और यदि गौर करो तो इप्टा के समय से ही मनोरंजन, संचार, विचार, साहित्य, कला सभी माध्यमों पर एकाधिकार सा करके उल्टे को सीधा बताने का काम तुमने लगातार किया है और उसी धौंस और आतंक के साथ किया है जिसके लिए तुम फासिज्मा को दोष देते हो।
‘’हिन्दी भाषी क्षेत्र में तुम्हारा प्रभाव सबसे अधिक रहा है और आज तक बना हुआ है, इसलिए तुम देशद्रोह को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिद्ध कर लेते हो। यदि भारतीय भाषाओं में शिक्षा और उच्चतम अवसरों की उपलब्धता और अंग्रेजी को गौण स्थान देने की बात आए तो सबसे पहले तुम इसका विरोध करोगे। हिन्दी के नब्बे प्रतिशत साहित्यकार और पत्रकार तुम्हारे सम्मोहन में आज भी है इसलिए वे स्वयं जो अन्यथा हिन्दी का राग अलापते हैं, भारतीय भाषाओं का विरोध वे करेंगे या ऐसा करने में लज्‍जा अनुभव हो तो मैदान से पीछे अवश्य हट जाऍंगे, इसलिए कहता हूँ कि पहली और सबसे बड़ी रुकावट तुम स्वायं हो क्यों कि तुम्हारे हित अमेरिकी नवसाम्राज्यवाद से जुड़ चुके हैं और वह यह नहीं चाहेगा कि अंग्रेजी का वर्चस्व समाप्त हो।