“हाँ, अब शुरू करो अपना मोदीनामा ।“
“मै ऐसा कुछ नहीं बता सकता जो तुम्हे पहले से मालूम नहीं। सिर्फ यह याद दिला सकता हूँ कि तुम्हारा प्रचार-तंत्र उसके किए पर परदा डालता रहा और काल्पनिक या मनोवैज्ञानिक मुद्दों को अनावश्यक तूल इसलिए देता रहा है कि लोगों का ध्यान उधर से हटाया जा सके। हैरानी इस बात की है कि तुम जैसे पढ़े लिखे लोग भी इतने उदासीन हो चुके हैं कि उनकी याद दिलाओ तो उसे प्रशस्तिगान कहने लगते हैं। देखो पहले भी कह चुका हूँ मोदी का जिक्र तो हमारी बहसों में आएगा ही।
“एक बात और बता दूँ, मोदी स्वतंत्र भारत का सबसे महान प्रधान मंत्री है.”
“नेहरू से भी बड़ा?” वह हंसने लगा.
“नेहरू ने देश को तोड़ा, पटेल ने देश को जोड़ा. शास्त्री को मौक़ा मिला होता तो बिखराव को रोकते. यह काम दूसरे किसी के वश का नहीं था. मोदी में जोड़ने की दृष्टि भी है, संकल्प भी है और इस दिशा मैं उसने पहल भी की है. नेहरू को न तो देश ने समझा न ही नेहरू ने इस देश को समझा. नेहरू जिसके सगे लगते थे उसका भी उन्होंने अहित ही किया. अपनी जिस बेटी को वह इतना प्यार करते थे उसका घर परिवार इस महत्वाकांक्षा के चलते की भारत का राज नेहरू परिवार से बाहर न जाने पाये, तबाह कर दिया. दामाद फ़्रस्ट्रेशन में शराबी और शिथिल कटिबन्ध बना दिन काटता रहा और असमय कालकवलित हो गया. जिस उत्तर प्रदेश के थे वह उनके पूरे शासन काल में उपेक्षित रहा और उनकी करनी से ही वह भूभाग जो युगों से देश का ह्रदय या heartland माना जाता था वह गोबर पट्टी में बदल गया. जिस कश्मीर से उनका नाभि नाल जुड़ा था उसकी सारी समस्याएं उनकी पैदा की हुई हैं, जिस पंडित कुल के थे उनकी दुर्गति के हज़ार किस्से हैं पर उन्हें सुनने वाला कोई नही. पहली बार उधर निगाह गई है तो मोदी की. जिस शेख अब्दुल्ला से उनका भाई जैसा प्रेम था उनको अपनी किन्ही नीतियों से इतना खफा कर दिया कि उनका मन सरहद के पार भागने लगा था. उसे संभालने की जगह सीधे जेल मैं डाल दिया और एक कूटनीतिक समस्या को घर फूँक तमाशा बना कर रख दिया. अपने को उदार दिखाने के लिए एल्विन वेरियर को आदिवासी कल्याण योजनाओं का काम सौप कर और नागालैंड में ईसाइयत के प्रचार की खुली छूट देकर उ से नागालैंड से बागी देश बना दिया और पूरे उत्तर पूर्व को इतना भारत विमुख बना दिया कि उसे फ़ौज़ से नियंत्रित किया जाने लगा. लोकतंत्र के उपासक ने केरल में चुनी हुई नंबूदरी सरकार को इसलिए गिरा दिया कि इससे कम्युनिज्म रुक जाएगा. तिब्बत बफर देश था जिसकी स्वायत्तता की रक्षा का भार भारत पर था. उस पर बिपदा आई तो दुबक कर बैठ गए और साम्राज्यवादी मंसूबों वाले एक बड़े देश को सीधे अपने सर पर लाद लिया और फिर नानएलाइंड आंदोलन आ अग्रणी नेता बनने की झक में सामरिक तैयारी की जरूरत ही न समझी। अस्त्रागारों में सोलर कुकर बनते रहे। खुफिया तन्त्र इतना कमजोर कि पता ही नहीं चला कि चीन की तैयारी क्या है। लोहिया ने चीन की यात्रा से लौटने के बाद आगाह किया था कि इससे भारत को खतरा हो सकता है, परन्तु आप चीनियों को अफीम के नशे में धुत रहने वाली कौम मान कर अपने गरूर में खोये रहे। शानितपथ और न्यायमार्ग के नामकरण से ही मान बैठे कि अब राष्ट्र मंडल बन जाने के बाद युद्ध की समस्या सदा के लिए समाप्त हो गई और विश्व संस्था जो करेगी न्याय ही करेगी कूट व्यवहार नहीं। बिना अपनी सामरिक तैयारी की पडताल किए पहले ही उकसावे पर युद्ध की घोषणा कर दी। बिना रसद, और असले के, बिना गर्म पोशाकबूट, और क़ायदे के बूट के लड़ते हुए हमारे निहत्थे, ठण्ड में ठिठरते, भूखे- प्यासे जवानो का कत्ले आम करा दिया और इसी सदमे में अपनी जान गवाँ दी.. ऐसे किताबी और आत्म ग्रस्त और देशघातक प्रधानमन्त्री की तुलना तुम मोदी से करने की सोच ही नही सकते.
नेहरू को किंवदन्तियों ने पतंग की तरह आसमान में टांग रखा था: बड़े बाप का बेटा, बड़े नाज़ों से पला, जिसके कपड़े इंग्लॅण्ड के धोबी नहीं धो पाते थे, पेरिस में धुलते थे, जेल में भी दूसरों से अधिक सुविधाओं से दिन काटने के बावजूद सबसे अधिक कष्ट झेलने वाले नेता जैसी कहानियों ने उसे देश का लाडला बना रखा था. दुनियादारी में वह लाडलों जैसा ही नादान भी था. होशियारी बस एक कि राज खानदान से बाहर न जाने पाये., उनकी भव्य काया और सौंदर्य ने, जिस पर वह खुद भी रीझे रहते थे, उनके सलीके और सुरूचिपूर्ण पोशाक आदि ने उनके व्यक्तित्व को इस तरह मंडित कर रखा था कि रखा था कि तुम नेहरू के आभामंडल को ही नेहरू मान बैठते हो. इस चायवाले के बेटे के पास सम्मोहित करने लायक कुछ नही, सब कुछ मिटटी की तरह मटियाला, फिर भी इसने उस मिट्टी की महक को पहचाना है और आध्यात्मिक शान्ति के लिए भटकते हुए उस मेरुदण्ड को भी समझा है जिसने इस देश को हज़ारों साल से तन कर खड़ा रहने की शक्ति दी है.”
वह खीझ रहा था, यह तो उसके चहरे से ही ज़ाहिर था, उसने मेरा कहा गौर से सुना भी न होगा. बोलने चला तो हकलाने लगा, “तुतुम्हे तो चारण होना चाहिए था.”
मैंने उसकी और ध्यान ही न दिया, “और सुनो, एक दिन मैंने कहा था कि इस देश के विभाजन और इसकी समस्याओं के लिए तुम्हारी पार्टी ज़िम्मेदार है, वह आधा सच था. पूरा सच यह है कि इसके विभाजन और उससे जुडी असंख्य त्रासदियों के लिए केवल दो आदमियों की प्रधान मंत्री बनने की महत्वाकांक्षएं जिम्मेदार थीं. और जानते हो, दोनों सेक्युलर मिज़ाज के थे. जिन्ना और नेहरू. गांधी जी इस रहस्य को समझ गए थे. कहा था, देश का बटवारा मेरी लाश पर होगा इसलिए अंतिम प्रयास किया था विभाजन की त्रासदी से बचने कि लिए जिन्ना को प्रधानमंत्री पद दे दिया जाय. परन्तु यह नेहरू थे जो अपनी महत्वाकांक्षा का त्याग करने को तैयार नहीं हुए थे. गांधी उसी दिन जीवित लाश बन गए थे. उपेक्षित, त्यक्त, विरक्त. ज़िंदगी को प्रार्थना के माध्यम से ढोते हुए. जब विभाजन कि दस्तावेज़ तैयार हो रहे थे तब उसकी आंच से बचने कि लिए नोआखाली चले गए थे कि कौन जाने कोई सिरफिरा उनकी जान ही लेले और वह अपनी उस प्रतिज्ञा पर खरे उतरें कि विभाजन उनकी लाश पर ही हुआ. नाथूराम ने तो अपनी विक्षिप्तता में उन्हें सद्गति दी थी, उनकी वह इच्छा पूरी की थी जो नोआखाली में पूरी न हो पाई थी. उन्हें सद्गति दी थी, जैसे कोई पुत्र पिता को चिताग्नि देता और कपाल क्रिया करता है.”
“इतना बोर तुमने इससे पहले कभी नहीं किया होगा.” वह पछता रहा होगा कि कहाँ से नेहरू का प्रसंग छेड़ बैठा.
“मैं भी देख रहा था. कई बार तुम इधर उधर देखने लगते थे कि आसपास कोई ईंट पत्थर है या नही, पर सच मानो मुझे बहुत मज़ा आरहा था. मैं कहना यह चाहता था कि यह भारत का पहला राजनेता है जिसने सोचा, गोलियों से किसी को अपना बना कर नही रखा जा सकता. अपना बनाने के लिए उनके हित को अपना हित मानना होता है. इन अकड़े हुए क्षेत्रों और जनों को विकास की दिशा में आगे बढ़ाकर, प्रगति का सहभागी बनाकर, उन्नति के अवसर देकर ही अपना बनाया जा सकता है. यह सोच पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर तक है. यह इलेक्शन का नारा नही था, इस पर अमल की कोशिश शुरू हो चुकी है. यही उसके नारे सबका साथ सबका विकास में भी है. नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका से अपनापे में भी. यह आदमी नारा गढ़ना भी जानता है, नारे को हक़ीक़त में बदलना भी जनता है और यह भी जानता है कौन क्यों विकास और अपनापे का विरोध कर रहा है.”
उससे रहा नहीं गया तो उठते हुए बोला, “इति भगवान सिंह विरचित मोदीनाम्ने चाटुग्रन्थे प्रथम: अध्यायः”
11/29/2015 4:23:22 PM