गतं न शोचामि कृतं न मन्ये
“बोलो कब शुरू हो रहा है तुम्हारा ‘अपने अपने मोदी?’”
“आजकल पूरे देश में एक ही काम हो रहा है। मोदी नामा का वाचन। कोटि कोटि कंठों से। अपनी अपनी भाषा में, जप भी, अजपा जाप भी। तुम भी वही करते हो। मोदी के तो तुमने इतने रूप बना दिये है कि मैं लिखने भी चलू तो अपने अपने मोदी नहीं, ‘सबके मोदी सबके पास’ लिखना पड़ेगा।“
“ठीक है यही लिख मारो, पर उस रूप को भी जरूर रखना जिससे लोग असुरक्षित अनुभव करते हैं।“
“लिखूँगा जरूर और यह भी लिखूँगा कि असुरक्षित कहने वालों ने इतिहास में असुरक्षा की भावना जगा कर, क्या क्या गुल खिलाए हैं।“
“दंगे भड़काए हैं, तुम एक बार कह चुके हो।“
“मैं कहता हूँ, इस बार भी यही चाहते हैं। तुमने शर्बत खालसा का आयोजन नहीं देखा। यह उस आदमी का लड़का कर रहा है जिसके बाप की करनी के कारण उस उपद्रव को बढ़ावा मिला था जिसमें हिन्दुओं को बसों से उतार कर कतार में खडा करके मारा जाता रहा। आइ एस आई के तर्ज पर। जिसके उग्र रूप धारण कर लिया और राज्य के लिए खतरा बन गया तो हरमिन्दर साहब पर हमला और कत्लेआम हुआ। जिसकी अगली कड़ी उसकी दादी की हत्या थी जिसमें पता नहीं किनका किनका हाथ था और फिर 1984 का वह नृशंस और राज्य प्रायोजित हत्याकांड हुआ था। नासमझ इतिहास भूल जाते हैं और उसे दुहराते रहते हैं। समझदार इतिहास की गलतियों से सीख कर उससे बाहर आ जाते हैं और गलतियों से बचते हैं। तुम जिसके साथ खड़े हो वह शर्बत खालसा कराने वाला है, और मैं जिसके साथ हूँ वह इतिहास की चूक से बाहर आने वाला और गलतियों से बचने के लिए असाधारण धैर्य का परिचय देने वाला किरात है। किरातार्जुनीयम् पढ़ा है तुमने?“
“संस्कृत पढ़ी ही नहीं तो पढ़ता क्या। नाम जरूर सुना है सामान्य ज्ञान बढ़ाने के चलते।“
“मुझे भी कहानी तो भूल गई है पर वह मुद्रा याद है। अर्जुन किरात पर वाणों से लगातार प्रहार करते हैं पर उसका कुछ बिगड़ता ही नहीं। अन्त में थक कर अर्जुन समर्पण कर देते हैं और तो किरात वेशधारी शिव अपने वास्तविक रूप में प्रकट होते हैं और अर्जुन की वीरता से प्रसन्न हो कर उन्हें पा शुपत अस्त्र देते हैं जिसका प्रयोग महाभारत में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण के विरुद्ध किया जाता है।
“अन्तर केवल यह है कि इस बार बाण चलाने वालों में पूरा प्रचारतन्त्र शामिल है जिसने उतने भयानक आयोजन को आया-गया कर दिया पर सीधा हमला न बना तो असुरक्षा के माहौल को खड़ा करके छायायुद्ध करने लगे – रामायण में आता है ‘कूट योद्धा हि राक्षसाः।‘ जानते हो जिस दिन मैंने कहा सभी वैज्ञानिकों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक और तार्किक नही होता उसी दिन मेरे पास हिन्दू के मालिक एन. राम का भी एक ट्विटर आया था, जिसमें उन्होंने एक वैज्ञानिक का इंटरव्यू ट्वीट किया था। इतना अच्छा इंटर व्यू, प्रश्न करने वाले का अन्दाज, उच्चारण, प्रश्नों का चुनाव इतना उम्दा कि एक-एक वाक्य मेरी समझ में भी आ रहा था, जब कि टीवी चैनलों की हिन्दी तक मेरी समझ में नहीं आती। और उतना ही नपा तुला सुविचारित उत्तर उस वैज्ञानिक का जो अखाड़े में उतर आया था और बता रहा था कि ठीक इस मौके पर वह दंगल में क्यों शामिल हो गया। लम्बे अरसे तक वह सन्तुलित, तटस्थ और एक वैज्ञानिक के अपने सरोकारों के साथ बोलता रहा, बस अन्त में जब उसने कोसम्बी को वैज्ञानिक इतिहासकार और उससे पहले के लेखन और सामग्री को पौराणिक वगैरह बताया तब पता चला, वह धुले दिमाग का वैज्ञानिक है, और जिन विषयों का ज्ञान नहीं है, उन पर भी बोल सकता है, क्योंकि वह अपने पढ़े को अन्तिम सत्य मान कर आगे पढ़ना-समझना बन्द कर चुका है। ठीक यही स्थिति एन. राम और उनके हिन्दू की भी है। पहले से ही एक पोजिशन ले कर उसी को सही साबित करने के लिए आतुर पत्रकार हो, पत्र का मालिक हो या वैज्ञानिक हो, वह केवल वही देखेगा जो उसकी पोजिशन को सही साबित करे। वह पढ़ता नहीं है अपने काम की चीज की तलाश करता है। उसका विकास रुद्ध हो चुका है। सोचना देखना बन्द। जाने और माने के अनुरूप तथ्यों और आँकड़ों की तोड़-मरोड ही उसके लिए चिन्तन बन जाता है। इंटरव्यू के अन्त तक पहुँचते-पहुँचते एन राम और उस वैज्ञानिक पर हँसी आने लगी।“
“सभी अखबारों की अपनी एक नीति होती है। इसमें हँसने की क्या बात है, यार।“
“यदि पत्र पक्षधर है तो दूसरे पक्ष की पीड़ा को नहीं समझ सकता। वह अपनी कीर्तन मंडली के लिए ही ग्राह्य हो सकता है। उसके भी ज्ञान का विस्तार नहीं कर सकता। इतिहासकार और जिम्मेदार पत्रकार की भूमिका न्यायाधीश की होती है। जहाँ किसी तकाजे से, यहाँ तक कि देशप्रेम या या राष्ट्र प्रेम के तकाजे से भी इसमें समझौता किया जाता है, उसकी विश्वसनीयता घटती है। वह यदि किसी राजनीति से परोक्ष रूप से भी जुडा हुआ है तो धीरे-धीर उसका भोंपू बनता चला जाता है। मुझे हँसी हिन्दू के एक निष्पक्ष और साहसी पत्र से भोंपू बनते चले जाने की नियति पर आ रही थी, जिससे बेखबर एन. राम अपने ट्विटर में मुस्कराते नज़र आ रहे थे। बोफोर्स की दलाली उजागर करके धाक जमाने वाला उस जत्थे के साथ ताली बजा रहा है जो ‘लाज शरम तज दीनी रे तोसे नैना मिलाइके’ गाता झूमता रहा और मस्ती में बेपर्दा हो गया. इतिहास में कैसे कैसे समीकरण बनते हैं!”
वह हँसने लगा, “लाज शरम तज दीनी नहीं है. छाप तिलक सब छीनी है.”
“वही बात है। तुम्हारी बात भी सही। छाप-तिलक का भी फरक मिट गया है नही तो इतने झंडो और डंडों का मेल कैसे होता। सभी सुर मिला कर वही कौवाली क्यों गाने लगते।
“आपात काल के दौर में, बोफर की हेराफेरी के समय हिन्दू ने, जो निडरता दिखाई थी, उससे उसकी विश्वसनीयता बढ़ी थी। उसके बाद लगता है सनसनी पैदा करते रहने का चश्का सा लग गया। सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम लीग वाली मानसिकता के लोगों का प्रवेश हिन्दू में उसी तरह हो गया जैसे एक निर्णायक मोड़ पर कम्युनिस्ट आंदोलन में हुआ था जिसकी चर्चा तुमसे कर चुका हूँ। लीग के प्रोग्राम को सेकुलरिज्म का नाम देकर आगे बढ़ाने में हिन्दू की भूमिका सबसे प्रधान रही है। कम्युनिस्ट पार्टी ने तो अपनी भूल मान भी ली हिन्दू की समझ तक में यह बात नहीं आई है।
“ये असुरक्षित अनुभव करने वाले लोग अपनी पुरानी बेवकूफियों से डरे हुए हैं। मोदी ने तो ठीक वही नीति अपनाई जो ‘अपने-अपने राम’ में राम की है – गतं न शोचामि कृतं न मन्ये। आगे बदले की कार्रवाई करते भी नहीं हैं। सभी अपने किये से डरे उन्हें मिटाने का प्रयत्न करते हैं और अपने ही कुकर्मों से अपना अनिष्ट करते हैं. तुमने ‘अपने-अपने राम’ की ठीक याद दिलाई यार। इस ओर तो मेरा ध्यान ही नही गया था।
“तो तुम समझते हो सब कुछ ठीक चल रहा है।“
“अभी तो किक लगा है, इंजन चालू हुआ है, चल-रहा का सवाल कहाँ से पैदा हो गया । ठीक चल रहा है नहीं, ठीक दिशा में चल रहा है। अगर अकेला आदमी भय, आतंक, फूट और पिछड़े पन से देश को मुक्ति दिलाने के लिए ऐसा प्रयत्न कर रहा हो जिसे भगीरथ प्रयत्न कहा जाता है, गलत कह दिया, इसे तो तुम समझ ही नहीं सकते, हरकूलियन प्रयत्न कहूँ तो समझ जाओगे, हां तो, हरकूलियन प्रयत्न कर रहा हो और दूसरे सारे लोग रस्सी बल्ला ले कर उसके पाँव फँसाने और पीछे खींचने में लगे हों, ओर इसके बाद भी वह खड़ा ही नहीं, आगे बढ़ता हुआ दीख रहा हो, तो इतना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है। परन्तु उसने इतनी बाधाओं के बीच जितना कुछ कर दिखाया वह किसी दूसरे से सम्भव हुआ ही नही. किसी को सूझा तक नहीं.”
“मैं भी तो सुनूँ।“
“मिनटों में खत्म होने वाली बात तो है नहीं, इसे कल के लिए रखो।“
11/28/2015 9:32:32 AM