यही जाना कि कुछ न जाना हाय
‘मैं तुमसे फिर वही सवाल करता हूँ क्या तुम्हें कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में कुछ अता पता है, या जो जी में आया बक जाते हो।’
‘पार्टी के बारे में तो तब पता होता जब पार्टी के भीतर रहा होता। उसकी नौबत नहीं आई। जो पार्टियाँ भारतीय दृश्यपट पर थीं उनमें सबसे अधिक सुथरी पार्टी या कहो भ्रष्टाचार से मुक्त, सदाशयी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ही लगती रही। इसलिए दूसरों की अपेक्षा इसके प्रति लगाव था।‘
फिर यह लगाव कम कैसे हुआ?
“कम नहीं हुआ, मोहभंग सा हुआ।
1983 में मैंने हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य के दोनों भाग लिखे थे। इसके प्रकाशन में चार साल का जो विलम्ब हुआ वह आइसीएचआर की राजनीति के चलते हुआ। प्रकाशन के बाद आलोचना करने की जगह इसे दबाने, जिज्ञासा करने वालों को बहकाने का प्रयत्न जिस बड़े और सुनियोजित रूप में किया गया उसने मोहभंग पैदा किया और फिर एक एक चीज की जाँच करने चला तो लगा यहाँ तो कोई काम सही तरीके से किया ही नहीं गया और प्राचीन इतिहास को योजनाबद्ध रूप में कुत्सित बनाने का प्रयत्न लाभ के लोभ में किया गया। 1995 में अंग्रेजी में दि वेदिक हड़प्पन्स के प्रकाशन के बाद जब वह देश विदेश में आयोजित सेमिनारों में चर्चा में आई उसके बाद आर्य आक्रमण और आर्यो के बाहर से आने की मान्यताओं को गलत मान कर पुनर्विचार आरंभ हुआ परन्तु उसमें भी जितनी खींचतान अपने को मार्क्सवादी कहने वाले भारतीय इतिहासकारों ने किया वह विस्मयकारी था।’’
“बस इतनी सी बात पर तुमने पूरी पार्टी को, उसके सारे किये कराये पर पानी फेर दिया? आत्मरति की हद है!”
“यह इतनी सी या उतनी सी बात नहीं होती। इसे चक्षुखोलक अंजन कहते हैं। आई ओपेनर। लम्बे समय तक तुम बिना सोचे-विचारे मान्यताओं के बहाव में बहते और उसी के भीतर उछल-कूद करते चले जाते हो और फिर किसी झटके से जब आँख खुलती है तो पाते हो यहाँ तो कुछ भी ठीक नहीं है। यह मैं कोई नई बात नहीं कह रहा हूँ यह भी मार्क्स कहीं कह गए हैं। प्रसंग मुझे याद नहीं पर उन्होंने उसके सर्वत्र होने के सन्दर्भ में कही है, शायद शोशण के बारे में, कि वह तत्व हमारे चारों ओर होता है और पहले हमारा ध्यान उधर नहीं गया रहता है और फिर जब ध्यान जाता है तो हैरानी होती है कि मैंने इससे पहले इसे देखा क्यों नहीं।“
‘‘सिर्फ तुम्हें दिखाई दे रही है?’’
‘‘ठीक कहते हो, जो अपना पूरा जीवन उसी में लगा चुके हों, सट्टा बाजार की भाषा में अपनी सारी जमापूँजी दाव पर लगा चुके हों वे इस आघात से बचने के लिए देख कर भी मानने से इन्कार कर देंगे और आगे भी आँख बन्द किए रहेंगे।“
‘‘क्या-क्या दिखाई दिया तुम्हें, समझूँ तो।’’
‘‘पहली चीज तो वही जिसे मार्क्स और ऐंगेल्स भी अपनी हड़बड़ी के कारण नहीं देख सके थे कि एक नई व्यवस्था इतनी कमजोर नहीं होती कि उसे उभार के समय ही उखाड़ फेंका जाय। कम्युनिस्ट मैंनिफेस्टो को दुबारा देखो। उन्होंने पूँजीवाद को सार्वभौम मान लिया। और इसलिए मान लिया अब उसके ऊपर प्रहार करके इसे हटाया और नई साम्यवादी व्यवस्था को लाया जा सकता है। गलती करने वाले वह अकेले नहीं थे। दूसरी सोच वाले भी थे। पूँजीवाद के खात्मे के लिए बाहर से प्रयत्न की जरूरत नहीं थी, उसके भीतर से जर्जर होने की प्रतीक्षा और उसके लिए तैयारी की जरूरत थी। वह नहीं की गई। पहले महायुद्ध में अजेय रूस को बर्वादी पर लाकर स्वतः वह विक्षोभ पैदा कर दिया जिसका लाभ उठा कर सत्ता परिवर्तन कर दिया गया। परन्तु इसमें मेनशेविक जो मानते थे कि अभी साम्यवाद का चरण नहीं आया है, लोकतांत्रिक व्यवस्था और पूँजीवादी विकास का मार्ग उचित रहेगा, अधिक सही थे और मार्क्सवाद की उनकी समझ लेनिन से अच्छी थी। प्रतिस्पर्धी पूँजीवादी शक्ति के रूप में रूस के उभार के बाद वि श्व पूँजीवाद का परिदृश्य क्या होता इसकी हम आज कल्पना नहीं कर सकते।“
‘‘मान लो यह सच ही हो तो क्या इतिहास में लौट कर गलतियाँ सुधारी जाती हैं?”
‘‘लौटना संभव ही नहीं। अभी जो शब्द मेरे मुँह से निकल चुके हैं, उनमें से एक अक्षर को भी
अनकहा नहीं किया जा सकता।’’
‘‘फिर?’’
‘‘उस इतिहास का वि श्लेषण किया जा सकता है कि हम यह समझ सकें कि हमसे और कौन कौन सी चूकें किन-किन कारणों से हुई हैं और उस समग्र समझ से आज की अपनी भूमिका तय कर सकें, न कि लाज बचाने के लिए आत्मनिरीक्षण से मुँह चुराते हुए, लकीर पीटते चलें, अपने को नेस्त नाबूद करने तक कबाड़ा करते चलें।”
‘‘तुम्ही से सुनना चाहता हूँ कौन कौन सी चूकें हमसे हुईं।“
‘‘देखो, विज्ञान का एक नियम है कि कि प्रकृति को समझ कर उसी में से अपने नियमों को तलाश कर उसे बदला जा सकता है। तुम्हें मार्क्स की वह इबारत याद न होगी जिसमें उन्होंने कहा था, कि एक समय आएगा जब भौतिक विज्ञानों को मानवविज्ञानों को समाहित कर लेना होगा, उसी तरह मानव विज्ञान भौतिक विज्ञान को आत्मसात् कर लेगा: जब एक ही विज्ञान रह जाएगा।
Natural science will in time incorporate into itself the science of man, just as the science of man will incorporate into itself natural science: there will be one science.
Marx, Private Property and Communism (1844)
“यह तो हुई भविष्य की बात, परन्तु जैसे भौतिक विज्ञान भूत तत्वों की समझ से उन्हें बदलता है, उसी तरह समाज की गहरी समझ से ही समाज को बदला जा सकता है और इसे समझने का सबसे सही तरीका है इतिहास को समझना, उसकी कारक शक्तियों की पहचान और उनसे अपने औजारों का निर्माण। यह किया ही नहीं गया।
“तुमने इतिहास को समझने की जगह, उसे गढ़ना आरंभ कर दिया। गढ़ना ही नहीं इस तरह विकृत करना कि सोच कर नैतिक और बौद्धिक गिरावट पर आश्चर्य होता है। परन्तु इस पर शाम को चर्चा करेंगे।