Post – 2015-10-02

वक़्त उसका ही है पर ढूंढिए वहाँ भी नही
छोड़ कर इसको वह बाहर कभी गया भी नहीं
सोचता सा लगा जब भी उसे देखा मैंने
कहना भी चाहा था कुछ सोच कर कहा भी नहीं
बचपना तो बना रहेगा उम्र ही क्या है
अभी गुज़ारे हैं उसने तो दस दहा भी नहीं
चिराग़ जलने दो पर नीम अन्धेरा भी रहे
वर्ना तारों की मिचौली हो कहकशां भी नहीं
अपने कमरे में वह कुछ बन्द बन्द रहता है
कल उधर देखा तो पाया कि था वहाँ भी नही
पता लगाओ तो भगवान से चलकर मिल लें
कोई कहे न कि कल तक था अब रहा ही नही.
10/2/2015 7:34:09 PM