Post – 2015-09-12

जो लोग अपनी प्रतिक्रियाओं को तत्काल सुलभ माध्यमों से व्यक्त नही करते वे भी व्यथित होते हैं. परन्तु जो लोग इसमें तत्परता दिखाते हैं उनका नितांत संवेदनशील मुद्दों पर चुप रहा जाना खलता है. उदय प्रकाश ने लेखकों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर भारत में भी पाकिस्तान व बांग्लादेश की नक़ल पर लेखकों की ह्त्या की प्रवृत्ति के विरोध में अपना क्षोभ प्रकट करते हुए और साहित्य अकादमी द्वारा अपने पुरस्कृत लेखकों तक की ह्त्या पर चुप्पी साधने के विरोध में अकादमी सम्मान लौटाते हुए एक प्रशंशनीय उदहारण पेश किया. काम से काम इसके बाद तो हिन्दी के बुद्धिजीवियों की चुप्पी टूटनी चाहिए थी. हम सुरक्षित कभी नहीं रहे पर अपनी उदासीनता से अपनी असुरक्षा स्वयं बढ़ाते हैं.