Post – 2015-09-12

एक दस्तक और बे-आवाज़
तने फैले पंख बे-परवाज़
एक मरकज़ दायरों से दूर
दायरों की तुच्छता का राज़
आसमानों की तरफ है दीठ
उपेक्षा उपहास पर भी नाज़
कई मोर्चों पर खड़ा बस एक
तने सर पर बर्छियों का ताज
होश में मदहोशियों के बीच
देखिये भगवान के अंदाज़.
9/11/2015 9:35:56 PM

वक़्त बेवक़्त उभर आता है जाने क्योंकर
यह मेरा अपना है या दर्द किसी और का है.
सूद-दर-सूद चुकाता ही चला आया हूँ
लिया मैंने नहीं यह क़र्ज़ किसी और का है.
सज़ा चुकाने की बस यह कि चुकाते ही रहो
जिस महाजन की बही है वह किसी और का है
‘तुम भी भगवान हो लाचार और बेबस इतने ?’
‘जिसको भगवान समझते हो गए दौर का है.’
9.11.2015