टकावादी मार्क्सवाद (१२)
“तुम यह तो मानोगे कि सारी पैंतरेबाजी और रोजगार के आश्वासनों के बाद भी बेरोजगारी बढी है, मंहगाई बढ़ी है, लोग बेहाल हैं। ऊपर से जो भी दावे किये जाँय स्थिति बेकाबू होती जा रही है। जनता को सपने दिखा कर कुछ चुने हुए उद्योगपतियों के खजाने भरे जा रहे है। वे कर वंचना कर रहे हैं तो उसकी अनदेखी की जा रही है। अब तो निर्वाचन आयोग ने भी कह दिया कि कुछ घरानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। तुम्हें इनमें से कुछ दिखाई नहीं देता।”
“मुझे तो यह भी दिखाई देता है कि हालत और बिगड़ेगी। सरकारी दफ्तरों में काम में सुस्ती के अनेक कारणों में एक यह भी है कि उनमें जरूरत से अधिक लोग भरे हुए हैं। कुशलता बढाने के लिए हो सकता है अनेक विभागों में रिक्त होने वाले पदों को ही समाप्त कर दिया जाये। स्वचालित यंत्रों के बढ़ने से कुछ और पद कम होंगे और बेकारी और विकट रूप लेगी। यदि तुम चाहो तो मैं चित्र को और निराशाजनक बना सकता हूँ। तुम दुर्भाग्य को अवसर मानते हो, इसलिए इसके समानांतर कुछ और सचाइयां हैं जिनकी और तुम्हारी नज़र नही जाती। उसके बावजूद तुम भी मानने लगे हो कि २०१९ में भी यही सरकार बनी रहेगी। दुर्भाग्य सचमुच बढ़ता जाय तो भी । और इसका कारण है विकल्प का अभाव। प्रयत्न विकल्प बनाने का करना चाहिए, प्रतीक्षा तुम देश की अधोगति की करते हो। देश ऐसे लोगों के साथ कैसे अपनत्व अनुभव कर सकता है। तुमने आर्थिक प्रश्नों पर ध्यान देने के सुझाव पर स्वयं इसके लिए टकावाद का प्रयोग किया था पर यह भूल गए कि तुमने टकावादी प्रलोभनों से मजदूरों को अपने पक्ष में करते हुए, उनको कामचोरी और तोड़फोड़ का औजार बनाते हुए अपना हवाई वितान ताना था। तुम्हारे पास क्रान्ति के सपने के अलावा कोई सकारात्मक कार्यक्रम था ही नही। जनता से जुड़ने का माध्यम जो भाषा है उस तक से न जुड़ सके।
“यदि मुझे नाम देना होता तो तुम्हें टकावादी न कह कर पाखण्डवादी मार्क्सवादी कहता। भाजपा के विषय में और कुछ भी कहो, उसने न तो अटल जी के काल में नकारात्मक राजनीति की न ही मोदी के कार्यकाल में, न ही विपक्ष में रहते हुए। संघ की विवशता थी कि उसे अटल जी को भी झेलना पड़ा और मोदी को भी झेलना पड़ रहा है और इन दोनों को संघ के दबाव से बचते हुए अपने सपनों के भारत का निर्माण करने का रास्ता निकालना पड़ा जिसमें किसी के लिए अलग से कोई ऎसी रियायत नहीं दी गई जिसकी संविधान में व्यवस्था नहीं। अपतोष के आदी लोगों को भले यह रास न आया हो और आज भी न आता हो। तुम्हारी राजनीति इतनी नकारात्मक रही कि उनके अच्छे कामों पर नज़र तक नहीं डाल पाते। यह तक समझ नहीं पाते कि उन सारी बुराइयों के बाद भी जनता का मोदी में विश्वास बढ़ता क्यों गया है? तुम इसकी विफलता देखते हो, सफलता के कारणों को समझना तक नहीं चाहते।”
“मैं नहीं समझता तो तुम्हीं समझा दो। तुमको तो नकारात्मक भी सकारात्मक दिखाई देता है।”
“पहले तुम मोदी के व्यक्तित्व को समझो। यह आदमी किसी को अपना दुश्मन नही मानता। यह अपना बनाने और अपनत्व निभाने में विश्वास करता है। सत्ता के प्रतिस्पर्धियों में खलबली इसी से मच जाती है। कुटिल योजना वाले पड़ोसियों में घबराहट इसी से पैदा हो जाती है। यह जिस भी काम को हाथ में लेता है, इतने समर्पित भाव से करता है कि अपने सहयोगियों और उन व्यक्तियों का मन जीत लेता है, चाहे वे कभी के अडवानी जी हों या जोशी जी या आज की भारतीय जनता। इससे सहयोगियों, प्रेमियों का ऐसा विशाल दायरा बनता है कि लोग दूसरे सभी आग्रहों को छोड़ कर इससे सीधे जुड़ते जाते हैं। यह दुश्मन का भी दिल जीतने और विशवास रखता है और जब तक इसे हासिल नही कर लेता तब तक धैर्य रखने की शक्ति रखता है! जब यह तरीका काम नहीं करता तो बिनु भय होइ न प्रीति वाले सूत्र का सहारा लेता है। अपने इसी गुण के बल पर इसने अपने संगठन के भीतर अपने वरिष्ठों और कनिष्ठों और समवयस्को का विश्वास जीता, पटेल बहुल और सता के प्रति आग्रही पटेलों के बीच अपना महत्त्व स्थापित किया और अपनी समर्पित कार्यनिष्ठ के कारण जिन वरिष्ठों में यह विश्वास पैदा किया कि वह उनका भक्त है। समय आने पर आदर सहित किनारे डालने में भी सफल हुआ। जो अग्रज नख-दन्त-विहीन करके किनारे डाल दिए गए वे खुलकर शिकायत तक नहीं कर सकते।
उसकी वही नीति अपने देश के सभी धडों को, इसके सभी अंचलों को, अपने सभी पड़ोसी देशों को मिलजुल कर सबकी प्रगति को संभव बनाने के प्रयोग में हुई जिसके लिए वह उस हद तक नम्रता दिखाने को तैयार दिखा जब तक आत्मसम्मान, देशहित और राष्ट्र सम्मान को ठेस न पहुंचे। कलह के लम्बे इतिहास वाले कश्मीर में उसी सहृदयता का परिचय देते हुए जब उसने उसकी आपदा निवारण , उसके विकास की संभावनाओं की तलाश और लोकमत का सम्मान करते हुए सबसे बड़े दल के साथ सरकार बनाने जैसे चकित करने वाले कदम उठाये तो आतंक और नफरत का निर्यात करने वाले पकिस्तान में खलबली मच गई। सत्ता से बाहर हो चुके दलों में वैसी ही बेचैनी। ये उसके कच्चे दाव न थे, न कठोर कदम थे। आतंकवादियों और अलगाववादियों को, उपद्रवकारियों को रिश्वत देकर उग्र होने से रोकने का तरीका उसने बंद किया। सोचो, यदि देना स्वयं उपद्रवकारियों को रिश्वत देकर मनाये तो उनकी तुलना में उसका मनोबल कितना गिरा रहेगा? कश्मीर जैसी उलझी समस्या को सुलझाने का सकल्प, धैर्य, सूझ, और यह विश्वास कि यह गोली से नही गले मिलकर हल होने वाली समस्या है, तुम्हे लफ्फाजी लगती है और मुझें एक अभूतपूर्व सूझ। तुम अपनी हताशा में अलगाववादियों के साथ खड़े हो कर कश्मीर में तो जगह बना नही पाते, देश से भी अलग होते जाते हो।“
“विरुदावली समाप्त हो गई?”
“अभी बाक़ी है । मैं जानता हूँ तुम भीतर से इतने बेचैन हो कि मेरी पूरी बात सुन भी नहीं पा रहे होगे। पर जितना भी कान में पड़ जाय, अमृत समझो। यही नीति उसने पाकिस्तान और चीन के साथ भी अपनाई। यदि आर्थिक हितों को मजबूत किया जाय तो सामरिक तनाव कम होगा, परन्तु यह प्रयास सामरिक तैयारी के साथ किया। लेन देन के रिश्ते जोड़ते है, इसलिए प्रेम और दूसरे नातों का एक मजबूत धागा है अवसर के अनुरूप लेन देन, उपहार और सहयोग। पर इसी के साथ उसका वह व्रत न हम आँख झुका कर बात करेंगे न आँख दिखा कर बात करेंगे। हम आँख से आँख मिला कर बात करेंगे। तुम जानते हो, इससे पहले आँख चुराकर बात करने का चलन था। हमारी सेना के लोग भी कहते थे चीन के सामने हम कहीं नही ठहरते। पूरा देश पर्कुसन मेनिया से ग्रस्त था – चीन बर्मा से, श्री लंका से, पकिस्तान से हमें घेरता दिखाई दे रहा था और अपनी सीमाओं पर हमारे सनिक कापते खड़े रहते थे। आज चीन स्वयं घिरा हुआ लगता और अपनी दहाड़ के बाद भी सिहरा सिहरा दिखाई देता है और हमारी उन्ही सेनाओं के लोग कहते है हम चीन पर भारी पड़ते हैं, फिर भी टकराव की जगह संवाद को सही तरीका भी मानते है। अच्छे दिन तश्तरी में लड्डू रख कर नही कर्मठता और संकल्प जगाते हुए आते हैं।“
“बस करो यार, यह देखो, मैंने हाथ भी खड़े कर दिए।“ उसने हाथ उठाते हुए कहा ।
“करता हूँ पर जहां से बात शुरू हुई थी उस पर लौटें। इतने बड़े देश की बेरोजगारी जिसमें हर दशक में एक नया देश पैदा हो जाता है, दुनिया की कोई सरकार दूर नही कर सकती। वह लोगों को स्वयं अपनी सूझ बूझ से अपनी जीविका का साधन निकालने के लिए आर्थिक सहायता, तकनीकी सलाह और शैक्षिक सुविधाएं देने का प्रयास करे तो ही लोगों को सरकार की जिम्मेदारी पर बच्चे पैदा करने की जगह अपने घर परिवार को संभाल कर रखने की अक्ल भी पैदा हो सकती है। पता लगाना वह इस दिशा में सरकार कुछ कर रही है या नही।
॰मुझे इस व्यक्ति के काम से निराशा नही है। आशंका इसके उस अपार आत्मविश्वास से होती है जिसमें इसने किये तीन तीन इतने साहसिक प्रयोग जो यदि किसी दूसरे देश ने किये तो डूब गया या किसी अन्य ने किये ही नहीं। जन हित के नाम पर चलाई जाने वाली योजनाओं का पैसा बीच में खा जाने वाले दलालों को एक एक झटके में काट कर सीधे एक एक व्यक्ति से जुड़ने का उसका प्रयोग दूसरा सर्जिकल स्ट्राइक था। अब तक के विश्व इतिहास में अनूठा। यदि घबराहट में और कुछ न सुनाई पडा हो तो इतना सुन लो कि उसकी सबसे बड़ी ताकत लोगों का विश्वास जीतने , लोगों को जोड़ कर रखने की कला है। वह दुश्मन को मिटाने की जगह दुश्मनी को मिटाने के लिए जरूरत होने पर शक्ति का भी प्रयोग कर सकता है। इस कला में भी वह दक्ष है। अब उसकी इस शक्ति को जान लेने के बाद यह सोचो कि क्या उससे उसका यह हथियार छीन सकते हो। समाज से उसी तरह जुड़ सकते हो और उसका विश्वास जीत सकते हो?”