Post – 2017-11-26

जब प्यार था, यह लफ्ज कभी याद न आया।
नफरत के साथ लफ्ज ये तड़पाता रहे है ।।

Post – 2017-11-26

हंसते हुए उसको किया रुख्सत तो वो बोला
कम्बख्त तुझे मुझसे बिछड़ने का गम नहीं ।

Post – 2017-11-26

मैं खुश नही हूं देखिए, पर हंस भी रहा हूं।
जो कायदे की बात है वह कायदे से हो ।।

Post – 2017-11-26

यह दर्द ही है जो बचा रहता है जिगर में
खुशियां तो फुलझड़ी हैं, संभाली नहीं जातीं।
इतिहास में बस जंग, कत्ल, लूट दर्ज है
जो खुश थे उनकी तिकड़में जानी नहीं जातीं।।

Post – 2017-11-26

जो लोग मेरे कल की पोस्ट को पढ़ चुके हों वे अंतिम पैरा दुबारा पढ़ें। अवश्य।

Post – 2017-11-25

सवाल टेढ़े हों, टबरे हों या कि औंधे हों
हर एक सवाल का हल है उसे सीधा करना।

अब जैसा कि कहा था हम उन सवालों के जवाब तलाशेंगे जिन्हें कल उठाया था। सबसे पहले वे जिनके उत्तर में हमने ‘हां’ कहने से पहले सोचने की जरूरत नहीं समझी थी।

१. क्या यह सच नही है कि भारत पर आक्रमण होते रहे हैं और विजेता इस पर शासन करते रहे हैं?

उ. सच यह है आक्रमणों से बचने के लिए चीन को दीवार बनानी पड़ी, परंतु प्रकृति ने भारत को पर्वतीय दीवार दे रखी थी इसलिए दुनिया के किसी अन्य देश की तुलना में इसे सबसे कम आक्रमण झेलने पड़े। दूसरे किसी देश की तुलना में यह अधिक सफलता से आक्रमणकारियों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए उनके आक्रमणों को विफल करता रहा, जो त्रसदस्यु, शकारि विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, हर्षवर्धन की किर्ति से समझा जा सकता है।

इसके बाद भी केवल दारा को पराजित करके उसके साम्राज्य पर अधिकार करने के कारण महान बना दिया जाने वाले सिकन्दर को भारतीय सीमान्त के एक छोटे से राजा के साथ मुठभेड़ में ग्रीक सेना के मनोबल को इस तरह तोड़ दिया कि वह भाग खड़ा हुआ और भागते समय भी गणसंघों (मल्लों,क्षुद्रकों, कठों) के हाथों इस तरह पिट कर घायल होना पड़ा कि उनके कारण उसकी जान चली गई। भारतीय जलवायु के कारण न तो हम आ न जीवट ।

फिर भी कुषाण, शक, हूण(तोरमान), अरब (मुहम्मद बिन कासिम), महमूद गजनवी और मुहम्मद गोरी को सन्दग्ध परिस्थतियों मे भारत के किन्ही हिस्सों पर विजय मिली, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

२. क्या यह सच नहीं है कि विजेता सैनिक और सहायक यहाँ बस जाते रहे है?
उ. सच है कि वे बसते रहे पर उनकी संख्या नगण्य थी। भारतीयता का चरित्र उससे प्रभावित नहीं हुआ।

३. क्या भारत की सांस्कृतिक बहुलता में उनकी भूमिका नहीं रही है?
उ. भारत की सांस्कृतिक बहुलता और समावेशिता उनसे प्रभावित नहीं हुई। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि मुस्लिम आक्रान्ताओं से पहले के सभी आक्रान्ता प्रयत्नपूर्वक अपनी योग्यता के अनुसार भारतीय वर्णसमाज में मिल गए, इससे उन वर्णों की संख्या में नगण्य वृद्धि तो हुई, उनका अपना सांस्कृतिक योगदान कोई नहीं है। रंचमात्र का योगदान यूनानियों का सिद्ध करने का प्रयत्न तो किया गया पर इसकी परीक्षा होनी चाहिए कि फलित ज्योतिष उनकी ही देन है। नाटक के क्षेत्र में परदे के प्रयोग को यवनिका नाम के कारण यूनानी प्रभाव माना जाता था, पर यूनानी नाटक खुले में खेले जाते थे। उनमें परदे का प्रयोग नहीं होता था। भारत में परदे का चलन पहले से था। इसे तिरस्करणी कहा जाता था। अत: इस नाम के प्रयोग से ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि संभवत: बटुए का कौशल यूनानी था और उसकी नकल पर तिरस्करणी को जो ऊपर से नीचे गिराई जाती थी परदे को एक किनारे से खोलने और बन्द करने के लिए किया जाने लगा और इसके लिए प्रेरणा के आधार पर भेदक संज्ञा यवनिका का प्रयोग आरंभ हुआ।

तुर्कों के साथ एक पृथक् संस्कृति का और एक नई प्रौद्योगिकी का प्रवेश हुआ। इसे हम भारतीय भाषाओं मे दस-पांच शब्दों – तोप, तमगा, बारूद आदि – तक सीमित पाते है।

भारत में तीन सौ से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं। उनके बीच पारस्परिक लेन देन के रहस्यमय सूत्र काम करते रहे हैं जिसके कारण इतनी भाषाओं के रहते हुए भी इमेनो को यह एक भाषाई क्षेत्र लगा था। क्या इन भाषाओं में से किसी को इन आक्रान्ताओं की भाषा माना जा सकताहै? नहीं न!
यह मात्र एक कसौटी है, सभी कसौटियों से एक ही बात सिद्ध होगी कि जिस विविधता में एकता के अंगांगी भाव की हम बात कर रहे हैं वह बहुत पुरानी है। उसी में आक्रान्ता कभी सुर मिलाते समायोजित होते गए कभी बेसुरा राग अलापते उस कोरस में विघ्न डालते रहे। बहुलता मे एकता के समूहगान में अलग राग अलापते हुए उसे भंग करने वालों की इस एकप्राणता में कोई भूमिका नहीं।

४. क्या यह संभव नही कि सुदूर अतीत में इसी तह आर्यों ने आक्रमण करके भारत में प्रवेश किया हो और भारत पर अधिकार करके स्थानीय जनों को दास बना लिया हो और अपने सेवा कार्य में लगा लिया हो?

उ. इतिहास और न्यायविचार कयास से नहीं चलता। उलटबासियों से भरी इस कपोल कल्पना का खंडन हो चुका है ।

५. क्या यह संभव नहीं कि जो काम आर्यों ने द्रविड़ भाषियों के साथ किया, वही काम उनसे पहले उसी मध्येसिया से आए द्रविड़ों ने पहले बसे मुंडा जनों के साथ किया हो और उन्होंने स्वयं आक्रमण करके अपने से पहले के निगरों या निग्रोवत जनों के साथ किया हो?

उ. नहीं। ऐसा सोचना मानसिक विचलन है। जिसकी बुनियाद ही न हो, पहली मंजिल धराशायी हो उस पर ऊपर की मंजिलें बन नहीं सकतीं। फिर भी इसका कोई समाधान होना चाहिए कि उस क्षेत्र में तथाकथित आर्य, द्रविड़ और मुंडा के तत्व कैसे पहुंचे। हमने इसका विवेचन पहले किया है, उसे दुहराना उचित नहीं, पर यह याद दिलाना जरूरी है कि यह वैदिक समाज के पशु व्यापार से जुड़ी समस्या है।

६. जब तुम इतने प्रतिभाशाली हो कि इन तर्कों को समझ सको तो तुम्हे उचित सम्मान, पद , स्वीकृति तो मिलनी ही चाहिए सो यह रही, अब बताओ जिसे तुम संभावना मानते हो वह संभावना है या सत्य?

उ. जिसको वे प्रस्ताव सही लगते थे वह प्रतिंभाशाली और सूचनासंपन्न तो था पर उसने अपने दिमाग से काम ही नहीं लिया। उसके मस्तिष्क के उस कोने में जिसमें नीर-क्षीर विवेक के तंतुजाल होते हैं लाभ-लोभ तंतुजाल छा गए थे अन्यथा वह यह तो सोचता कि सुझाए मूल निवास में विकसित जन आरंभ से ही दीख रहे हैं फिर वे भारत में आदिम अवस्था में कैसे पहुंच गए?

७. तो जो सच है उससे अपने लोगों को परिचित तो कराओ.

उ. इसका परिणाम यह कि:
फरेब में पड़े रहे।
फरेब बांटते रहे।
पहन के कागजों का ताज,
तलवे चाटते रहे ।

८. अब बताओ क्या यह सच नही है कि भारत की प्रकृति कृपालु रही है. यहाँ अल्प प्रयास से जीवन निर्वाह संभव था,जब कि जहां प्रकृति अधिक क्रूर रही है इसलिए वहां जीवट और कौशल को बढ़ावा मिला ।
9. यह अर्धसत्य है। सभ्यता और आविष्कार का आर्थिक आधार होता है। प्रकृति अनुदार हो तो जीवनयापन की समस्या ही प्रधान हो जाती है। तकनीकी कौशल यहीं तक सीमित रहता है। लूटपाट की प्रवृत्ति और अधिक से अधिक जोड़ने की हवस प्रबल होती है। संपन्नता से वह चुंबकीय क्षेत्र तैयार होता है जिससे लाभान्वित होने के लिए प्रतिभा और अपनी कलाएं और कौशल लेकर और सेवा भाव से लोग स्वतः पहुंचते हैं और उनको नियंत्रित करने के और उनका सही मूल्यांकन करने के लिए उसे स्वयं शौर्य, निपुणता और जरूरी संस्थाओं का विकास करना होता है। देवों, आर्यों की सबसे बड़ी शक्ति थी उनकी कृषिकर्म में अग्रता। भारत में विश्व का सबसे विशाल और सबसे उर्वर कृषिक्षेत्र था जिसमें दो और तीन तक फसलें उगाई जा सकती थीं। इस समृद्धि ने उन्नत व्यापार को जन्म दिया था। जो इस नियम को नहीं समझता वह न भारत की समाज व्यवस्था को समझ सकता है न मानव इतिहास को।

Post – 2017-11-25

उस दिल को दुआ दो जो अब रहा ही नहीं।
लोगों ने सुना मैने वह कहा ही नहीं।
कहते हैं लोग रहता था भगवान यहां।
जब था तो न था कोई, अब रहा ही नहीं।

Post – 2017-11-24

आभासिक इतिहास और इतिहास की समझ
(असंपादित )

इतिहास को बचाने की कोशिशों के समानंतर उसे नष्ट करने कई कोशिश होती रही है और यह कोशिश अनुचित तरीकों से सत्ता में बने रहने वालों द्वारा अपनी प्रचार शक्ति के माध्यम से की जाती रही है। ये सच को दबाने के लिए अपने हितों के अनुरूप कहानियां गढ़ते और उन्हें ही सच्चे इतिहास के रूप में पेश करते रहे हैं। सचाई की खोज अन्याय के चरित्र को उजागर करने का और उसके अवशेषों पर प्रहार करने का सबसे कारगर तरीका है. झूठ को आज के युग में सत्याभासी रूप में प्रस्तुत करने के लिए अर्धसत्यों का सहारा लिया जाता है जिसमे किसी तथ्य के एक पहलू को उसका समग्र सयता बना दिया जाता है और समग्र सत्य की हत्या कर दी जाती है और यह योजनाबद्ध रूप में किया जाता है इसलिए इसके पीछे इरादों को समझने में धुरीण पंडितों से भी चूक हो जाती है..
बच्चों के साथ विनोद के लिए मैं एक खेल खेलता था. पूछता, बताओ तुम को क्या पसंद है? आम खाओगे? हाँ, मिठाई खाओगे? हाँ. काके खाओगे? हाँ. थप्पड़ खाओगे? हाँ. और फिर मैं ताली बजा कर हंसता तो वह भी नहीं नही करके हंसता.
पर इतिहास ऐसे सवालों पर बड़े बड़े पंडित हाँ कर बैठते हैं और याद दिलाने पर भी अपनी गलती समझ नहीं पाते. अपनी पिछली चर्चा पर लौटते हुए हम एक प्रश्नमाला पर नजर डालें:
१. क्या यह सच नही है कि भारत पर आक्रमण होते रहे हैं और विजेता इस पर शासन करते रहे हैं?
उ. सच है.
२. क्या यह सच नही है कि विजेता सैनिक और सहायक यहाँ बस जाते रहे है?
उ. सच है.
३. क्या भारत की सस्कृतिक बहुलता में उनकी भूमिका नहीं रही है?
उ. रही है.
४. क्या यह संभव नही कि सुदूर अतीत में इसी तह आर्यों ने आक्रमण करके भारत में प्रवेश किया हो और भारत पर अधिकार करके स्थानीय जनों को दास बना लिया हो और अपने सेवा कार्य में लगा लिया हो?
उ. संभव तो है.
५. क्या यह संभव नहीं कि जो काम आर्यों ने द्रविड़ भाषियों के साथ किया, वही काम उनसे पहले
उसी मध्येसिया से आए द्रविड़ों ने पहले बसे मुंडा जनों के साथ किया हो और उन्होंने स्वयं आक्रमण करके अपने से पहले के निगारों या निग्रोवत जनों के साथ किया हो.
उ, असंभव तो नहीं है..
६. जब तुम इतने प्रतिभाशाली हो कि इन तर्कों को समझ सको तो तुम्हे उचित सम्मान, पद , स्वीकृति तो मिलनी ही चाहिए सो यह रही, अब बताओ जिसे तुम संभावना मानते हो वह संभावना है या सत्य?
उ. लगता तो सत्य ही है।
७. तो जो सच है उससे अपने लोगों को परिचित तो कराओ.
उ. करना कराना कुछ नही. मुझे विश्वास दिलाना है कि ऐसा ही है.
८. अब बताओ क्या यह सच नही है कि भारत की प्रकृति कृपालु रही है. यहाँ अल्प प्रयास से जीवन निर्वाह संभव था,जब कि जहां प्रकृति अधिक क्रूर रही है इसलिए वहां जीवट और कौशल का विकास हुआ जब कि भारत में बसने के कुछ समय बाद शिथिलता आजाती रही है इसलिए इसमें ऊर्जा और नवोन्मेष बाहर से आक्रमणकारियों के माध्यम से आता रहा है?
उ. लगता तो ऐसा ही है.
९ . जब यहाँ सदा से इस भूभाग पर विजेताओं का ही राज्य रहा है तो क्या विजेता होने के नाते ब्रिटेन को इस पर शासन करने का नैतिक अधिकार है?
इस प्रश्नावली की यह तार्किक परिणति मोहभंग हो जाता है जैसे आइजेंक ने सेंस एंड नोंसेंस इन सोइकोलोजी में सम्मोहन प्रक्रिया में उस लेडी का हवाला दिया है जो अपने को सम्मोहित करने वाले निदेशक के सभी आदेश मानती जाती है और जब वह कहता है नंगी हो जाओ तो सम्मोहन भंग हो जाता है और उसे जोर का तमाचा लगाती है। इस अंतिम प्रस्ताव का सकारात्मक उत्तर किसी ने न दिया. यह सत्ता का बाहरी तर्क बना रहा और व्यंजित रहा. प्रश्न यह है सम्मोहन के सीधे सादे और कुछ कुछ सही लगने वाले तथ्यों को जो स्वीकृति दी गई थी उनके पीछे भी ऎसी ही शरारत थी और इसकी एक एक कड़ी गलत थी इसे न समझा गया क्योंकि हम उनके ही जुटाए और परोसे गए ज्ञान को ही अपना ज्ञान मान वैठे थे।
अब हम ऊपरी कड़ियों की बारीकी से जांच करें`तो पायेंगे कि इसकी हर कड़ी गलत है। हम सभी को यथातथ्य लें तो विषयविस्तार होगा, इसलिए स्थिति को प्रस्तुत करेंगे जिनमे सभी का समाधान हो जाए.
१. यह अधूरी सचाई है कि भारत पर आक्रमण होते रहे हैं। पूरी सचाई यह है कि दुनिया के सभी देशों पर आक्रमण होते रहे हैं और भारत इसका अपवाद नही रहा है।भारतीय इतिहास को आक्रमणों की शृंखला के इतिहास के रूप में चित्रित करने वाले अंग्रेज इतिहासकारों के अपने ब्रिटेन का इतिहास यह कि इस पर रोम, फ्रांस, जर्मनी, नार्वे, स्वीडन, स्कैंडिनेविया, स्पेन, मध्यएशिया आदि के पचासों आक्रमण हुए ( तालिका लम्बी है ) और वेल्स, स्काट, इंगलिश, आयरिश के आन्तरिक तनाव आज तक बने हुए हैं । परन्तु तथ्य के रूप में इसे स्वीकार करते हुए भी व्याख्या के स्तर पर कभी नहीं माना कि इसको ऊर्जा आक्रमणकारियों से मिलती रही और न यह माँने कि डचों और पुर्तगालियों के डर से लम्बे समय तक उनका साहस उस रास्ते भारत आने का न हुआ और अमेरिका के उत्तर से कोई जलमार्ग तलाशने में दर्जनों दुर्धटनाओं को झेलने के बाद मरने जीने का अंतिम खतरा मोल लेना पड़ा।
२. यह अधूरा सच है कि जीतने वाले अधिक बहादुर (जीवट वाले) रहे हैं, पूरा सच यह कि वे अधिक क्रूर और धोखेबाज रहे हैं और उनका इतिहास इस तरह की दगाबाजियों से भरा रहा है और हम अंग्रेजों से भी इन दगाबाजी के कारण हारे।
३. यह सच नहीं है कि उनके कारण सांस्कृूतिक विकास हुआ,सांस्कृतिक विकास में उनकी कोई भूमिका हो ही नहीं सकती। विनाश में उनका हाथ अवश्य था.
४.. भारतीय जलवायु सभ्यता और संस्कृति के अधिक अनुरूप रही है. इसकी प्राकृतिक समृद्धि भौतिक विकास में बाधक नही साधक रही है. सभ्यता के केंद्र आर्थिक समृद्धि पर निर्भर करते हैं.
५. भारत में जीवट की कमी कभी न थी. इसने जितने आक्रमणों को विफल किया – इतिहास पुराना है- उसकी तुलना किसी अन्य देश से करे तो शौर्य का साक्षत्कार हो जाएगा
६. छल प्रपंच से जीतने वाले भी अपनी सुरक्षा के लिए भारतीय योद्धाओं पर ही भरोसा करते थे.
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यहां मै यह नहीं कह रहा कि अंग्रेज कायर थे, बल्कि यह कि इतिहास हो या वर्तमान (दोनों अलग नहीं है, इसलिए इतिहासबोध वर्तमान की समझ या बोध से अलग नहीं होता, न बोध के लिए सद्भावना की जरूरत होती है। भावना या रागात्मकता वस्तुबोध में बाधक होती है, इसलिए समझ विवेचन के स्तर पर वस्तुपरकता, निर्ममता और व्यवहार के स्तर पर सदाशयता अपेक्षित है जिसकी छूट हमें वर्तमान तो देता है, इतिहास नहीं देता) हमारा ध्यान जिन बातों पर जाना चाहिए कि
1. व्याख्याकार ने जिन तथ्यों के आधार पर अपने निष्किर्ष निकाले हैं क्या वे प्रामाणिक हैं, अर्थात् वे (क) सही तो हैं? (ख) सही अनुपात में तो हैं ? (ग) स्थान, काल, संदर्भ में विचलन तो नहीं है?
२. जो नतीजे निकाले गए हे क्या परिणामों से उनकी पुष्टि होती है? इतिहास में तो परिणाम मिलेंगे, पर वर्तमान के परिणाम आने में ही नहीं, परिघटना से संबंधित सूचनाओं के सुलभ होने में समय लगेगा इसलिए किसी नतीजे पर पहुंचने की हड़बड़ी से बचा गया या नहीं?
अब इन्ही सवालों के जवाब हम कल तलाशेंगे ? आज लिखने में समस्या आ रही है.

Post – 2017-11-24

इस सुबह की भी शाम हो तो सही।
शमा का इंतजाम हो तो सही ।।
चुप नहीं, सिर्फ इन्तजार में हूं
मुझसे कोई सवाल हो तो सही।।
ठहरना चाहता हूँ मैं भी पर
कोई दिलकश मुकाम हो तो सहीं।।
मुझे प्याला नहीं रिसाला दो
शहर में कुछ बवाल हो तो सही।।
अब भी जिन्दा है देखिए भगवान
उसका अब इन्तकाल हो तो लही।

Post – 2017-11-24

अधिक समझदार लोग इतिहास से सीखते नहीं है, उसे पलटते हैं।