नाम धरे का भोग है सब काहू को होय
चला था आपबीती सुनाने और कठोर सचाइयों को सह्य बनाने के चक्कर में खुदा बीती सुनाने लगा और अब इस तत्ववादी दलदल में फंस गया कि अरबों ऐसे लोगों का मन रखने का लिए, जो मानते हैं कि खुदा, गॉड, ईश्वर या किसी भी भाषा में अपने किसी भी पर्याय से संबोधित किये जानेवाले बन्दानवाज का अस्तित्व है और उसने आदमी को बनाया ही नहीं, उसे अपनी शक्ल तक दे दी, हम मान लें कि ऐसा ही हुआ तो सवालों की भीड़ उठ खड़ी होती हैः
1. यदि उस ज़ीरो ने आदमी को अपनी शक्ल में बनाया तो उसकी शक्ल तो थी, फिर उसे निराकार तो नहीं कहा जा सकता?
2. उसने जब यह कायनात नहीं बनाई थी तब वह कहाँ था, कब से था, क्या कर रहा ?
३. उसकी शक्ल आदमी जैसी है तो उसे रहने को कोई जगह चाहिए थी. धरती और आसमान तो उसके हुक्म से बने उसे टिकने के लिए आसमान तो था ही नहीं?
४.आदमशक्ल था तो सांस लेना तो जीवित रहने के लिए जरूरी था. हवा तो बनी न थी, न कहीं रोशनी थी, वह देखता क्या रहा होगा?
५. वह जिस भी अवस्था में था, था। उसे यह पूरी कायनात बनाने की जरूरत क्या थी? किसके लिए बना रहा था ? आदमी के लिए तो नहीं। आदमी को तो उसने सबसे अंत में उसी प्रयोजन से बनाया होगा जिससे समूची सृष्टि को बनाया था। वह प्रयोजन क्या था?
६. आदमी को उसने खाक से बनाया और औरत को उस आदमी की पसली से तो दोनों में बेहतर बिल्डिंग मैटीरियल का इस्तेमाल किसे बनाने में हुआ ? यदि औरत के, तो दोनों में श्रेष्ठ कौन हुआ ?
७. यदि उसने मर्द को अपनी शक्ल दी तो औरत को किसकी शक्ल में बनाया? क्या वह अर्धनारीश्वर था ? यदि नहीं तो क्या उसकी घरवाली भी थी जिसे उसने खुदा होने का एकाधिकार बचाए रखने के लिए पहले अपनी पसली से गढा हो और फिर उसकी शक्ल में औरतों को गढ़ा हो? इस दशा में मर्द जात की दबंगई कायम रहती है या रखी जा सकती है।
८. खुदा को अपने बन्दे क्यों पसंद हैं? अपनी रचना से वह इतना डरता क्यों है कि वह उसे बाँध कर रखना चाहता है?
९. बंदा का अर्थ आप जानते होंगे फिर भी कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो न जानते हों या जानकर भी जानने से कतराते हों, युद्ध में विजय के बाद बलाधिकृत जीवित सैनिकों को हाथ बाँध कर विजेता सरदार या सम्राट, वह जो भी हो, उसके सामने लाया जाता था। उससे भी डरा रहता था कि कहीं वह उस पर हमला न कर दे।। कायर कौन हुआ और बहादुर कौन हुआ? विजेता या भौतिक रूप में विजित? किसने असमर्थ हो कर भी मरना कबूल किया -पर गुलाम बनने से इंकार किया ? मात्र इस सोच के कारण कि वह मर सकता हूं, झुक नही सकता – हाथ पीठपीछे या आगे की और मोड़ कर या आगे की और बंध कर लाया जाता था और उसका वध कर दिया जाता था। अपनी सम्मान और स्वतंत्रता को प्राण से अधिक मूल्यवान समझने वालों को शैतान की गिरफ्त में मान कर खुदा भी इन पर कहर वरपा करने का आदी था। वह उदारता उनके प्रति दिखाता था जो उसके समक्ष समर्पण कर देते थे। बाधने के लिए रस्सी की जरूरत न पडती, करबद्ध या मुश्कबद्ध की मुद्रा में उपस्थित होकर सर कटाने के लिए तत्पर भाव से जानुपात करते हुए सिर झुंका लेते या दंडवत बिछ जाते थे कि सिर काटने में कोई परेशानी न हो। स्वेच्छा से। बिना चूं चपड़ किए गुलामी के लिए तैयार लोगों को खुदा का बंदा कहा जाता है, जो स्वयं अपने को दास, बन्दा या गुलाम कहने पर गर्व करता है। इसकीं जड़े ऋग्वेद के दिवोदास और सुदास में ही दीखने लगती हैं। यदि ऋग्वेद में ही ज्ञुबाध (‘जानुनी बाधयन्त: अवनतजानव: प्रणता सन्त:।’ सायण ) शब्द का प्रयोग न हुआ होता तो हम सोच सकते थे कि सुदास आदि में जिस दासता का आभास मिलता है, उसकी प्रकृति भिन्न थी।
१०. यदि परम सत्ता ने मनुष्य को अपनी छवि में ढाला तो दासता की यह प्रवृत्ति भी उसमें रही होगी। यदि न होती तो उसमें इतनी हीन भावना न होती कि वह अपनी खुशामद करने के लिए लाचार बन्दों की इतनी बड़ी जमात पैदा करता और बंदापरवर, बंदानवाज बनने की जगह उसके माध्यम से किसी महान लक्षय की पूर्ति करता, और इसके लिए उसका बौद्धिक विकास करता और इसके लिए उसे पूरी स्वतंत्रता देता।
11. ऐसी दशा में अल्लाह या ईश्वर सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता, और इसका प्रमाण यह कि शैतान पर उसका वश नहीं चलता, जब कि शैतान उसके किए कराए पर पानी फेर देता है, यहां तक कि उसकी सत्ता मिटाने को तैयार है।
12. यह शैतान. यानी सत्य ज्ञान, विज्ञान का मिथकीय नाम है। यह सत्यज्ञान का अपभ्रंश तो नहीं है,परंतु इसकी व्युत्पत्ति सत से ही हुई है। यहां भारतीय मिथकों का एक विचित्र घालमेल देखने मे आता है, जिसमें इंद्र और वृत्र की कथा का उत्कर्ष गॉड (गॉड्स) और शैतान (अहि, सांप) में हुआ लगता है।
13. यह पूरी बुनावट इतनी उलझी हुई है कि इसके तार सुलझाने चलें तो आप सर पीट लेंगे, फिर भी इतना संकेत जरूरी है कि कैसे कृषि का जलदाता इंद्र जलदा, धन दा, गोदा, अश्वदा, भूरिदा, शतदा, सहस्रदा होता हुआ रहीम, करीम, बंनता है और विश्वस्मात् इंद्र उत्तरः (इंद्र सर्वोपरि है) , गॉड इज ग्रेट और ला इलाह इल अल्लाह में बदलता है और फिर व्पापारिक तंत्र के साथ अनेक स्वर्गों की कल्पना और अन्त में इन्द्र के नन्दन कानन की कल्पना जन्म लेती है जो पश्चिम में ईदन गार्डन या इन्द्रोद्यान (काफिरों का इंद्रकुन) बनता है और विकास कथा उलट जाती है।
14. इतना आप जानते हैं कि नन्दन और ईदन का अर्थ एक ही है। उधर सूखे या अकाल के जनक जल को चुरा ले जाने वाले या अवर्षी बादल जिसके सरकते हुए चलने के कारण उसे अहि की संज्ञा मिली और जिसने इन्द्र का शत्रु होने के कारण रावण , अहिरावण, भस्मासुर, जैसे रूप लिए, परन्तु भारतीय चिन्ताधारा में उनसे संघर्ष जारी रहा, पश्चिम में इसकी सत्ता को नकारने का प्रयत्न हुआ और फिर विरोध को घृणा का रूप देकर उसको कोसने और उसी को पोसने की परम्परा चली।
15. खैर उस माइथोलोजी के बन्दानवाज ने देने के नाम पर अपने बन्दे की आंखों पर पट्टी दी थी. आँख रहते हुए आँखों से काम न लेने की सलाह दी थी, और कान सिर्फ अपना कहा सुनने को वह देता नहीं था , खुद आदम को उन फलों को भी खाने नहीं देता था जिन्हें वह उसके आनंद उद्यान से तोड़ कर उसके सामने पेश करता था. लुटेरा बंदनावाज़ कैसे बन गया?
१6 सवाल अनेक हैं पर मेरे लिए डूब मरने की समस्या यह है कि आदमी खुदा का बंदा बन कर क्यों रह गया और खुराफात की जड़, विज्ञान की ग्राहिका औरत क्यों बन गई।
17. विस्तार को समेटते हुए कहना यह है कि आजतक खुदा के पट्ठे मंदिर, मस्जिद, कुरआन, गीता. के दाएरे में ही जंग क्यों कर रहे है.? समस्या तो आगे बढ़ने या उसमें रुकावट डालनेवाली समस्याओं में उलझाने के बीच सही चुनाव करने की है?
18. सभ्यता की लड़ाई अंध आवेगों, अंध विश्वासों और तर्क और प्रमाण के बीच है। हमें तय करना है, हम किसके साथ हैं।