अतिरंजना और यथार्थ (1)
इंडिका का लेखक, तेसियस (Ktesias), पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व में, पारसी सम्राट दारा (दारयावहु) के दरबार में संभवतः चिकित्सक के रूप में नियुक्त था। इंडिका के लेखक ने, कुछ अपनी जानकारी और कुछ सुनी सुनाई बातों के आधार पर भारत का चित्रण एक आश्चर्य लोक की तरह किया था। उसके आश्चर्यजनक विवरणों के पीछे की सच्चाई को समझने में लगभग सभी विद्वानों ने गलती की है और जब मैं उनकी गलतियों को उजागर करते हुए कुछ भिन्न बातें सामने ला रहा हूं तो मुझे भी जांचते हुए मेरे निष्कर्षों से सहमत या असहमत होना चाहिए। भारतीय विद्वानों ने मैक्क्रिंडिल और रालिंसन पर भरोसा करते हुए उनके कथन को मान लिया है, जो सही नहीं है।
यहां दो बातें ध्यान देने योग्य हैं। पहला, मेगास्थनीज से पहले के सभी यूनानी विद्वानों ने भारत के विषय में अपनी धारणा इंडिका के आधार पर ही बनाई थी। इसकी मूल प्रति दुर्लभ है, इसका जो उपयोग अपनी रचनाओं में दूसरों ने किया है, उसी से इसकी रूप-रेखा तैयार की गई है। दूसरा यह हिंदू शब्द का प्रयोग पहली बार नहीं तो भी सबसे पुराने प्रयोगों में, इसी पुस्तक में हुआ है और यूनानियों द्वारा हिंद के इंड और इंडिया बनाए जाने का तर्क भी यहीं समझ आता है । { सिंधु नदी के लिए हिंदु का प्रयोग अवेस्ता में है पर अवेस्ता में इस्लाम के जन्म के के बाद भी बहुत कुछ जोड़ा जाता रहा है इसलिए इस प्रयोग की कालसीमा तय करना कुछ कठिन है। } अब हम उन विवरणों को लें जो उन टुकड़ों से छन कर आते हैं जिनको इंडिका के लेखक ने दिया हो सकता है।
1. सिंधु नदी के विषय में उसका कहना है कि जहां यह संकरी है इसकी चौड़ाई 40 फर्लांग (स्टैडिया =184 मीटर) और जहां चौड़ी है वहां सौ स्टेडिया है। यदि सिंधु के बाढ़ क्षेत्र को लें और उस काल की सीमा को ध्यान में रखें तो नदी के किनारे से दूसरे तक फैले प्रसार के विषय में यह वर्णन कुछ ही अति रंजित लगेगा। इसका सीधा अर्थ केवल यह है कि इतनी विशाल जलसंपदा और चौड़ाई वाली किसी नदी को उसने, या उन्होंने जिनके ज्ञान पर उसने भरोसा किया था, न देखा था, न इसकी कल्पना कर पाते थे।
2. जब वह कहता है “भारतवर्ष में एक सोता है जिससे हर साल सौ घड़ा पिघला हुआ सोना निकलता है।” तो भारत की अविश्वसनीय समृद्धि पर आश्चर्य करने वालों की कल्पनाओं को मुखर करता है।
पश्चिम के निकट होने के कारण उर्वर चंद्ररेखा वाले क्षेत्र की जितनी भी तारीफ पश्चिमी विद्वानों ने की हो, दुनिया का सबसे उर्वर भूभाग, सिंधु गंगा का विशाल मैदान था, जिसमें अनुकूल परिस्थितियां होने पर तीन फसलें और सामान्य स्थिति में दो फसलें उगाई जा सकती थी और इसके कारण भारत अपनी संपन्नता के लिए पूरी दुनिया में विख्यात था। भारत में सोने और हीरे की खाने भी थीं, परंतु इसकी अपार संपदा का कारण उर्वर क्षेत्र ही था जिसका आज उन लोगों द्वारा उपहास किया जाता है जो इसकी दुर्गति के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं।
यह देश अपने इस वैभव के कारण ही बार बार लुटेरों के द्वारा लूटा जाता रहा और इसके बावजूद कुछ ही समय के भीतर दोबारा संपन्न हो जाता था जबकि वे बार बार लूटने के बाद भी कंगाल हो जाते थे। मध्यकालीन शासक भारतीय राजाओं को लूटने के लिए आक्रमण करते रहे और सैकड़ों गाड़ियों पर लाद कर लाया हुआ धन कुछ ही समय में खत्म हो जाता था, जनता से अधिक से अधिक उगाहने का प्रयत्न किया जाता था, फिर भी सैनिक अभियानों पर उनका धन खर्च हो जाता था, जिस के विषय में हम पहले भी लिख आए हैं । उर्वरता के साथ भारतीय समाज का अध्यवसाय और इसकी दक्षता भी जुड़ी हुई थी जिसके कारण विविध क्षेत्रों में इसने दूसरे देशों की तुलना में आश्चर्यजनक प्रगति की थी और व्यापार और वाणिज्य का इतना मजबूत आधार तैयार किया था जो दूसरों के लिए संभव न हुआ था। इसके सर्वमुखी समृद्धि यही कारण था।
2क. अपने कथन को विश्वसनीय बनाने के लिए वह कुछ जोड़ने तोड़ने का भी प्रयत्न करता है, “ घड़ा मिट्टी का होता है और बाहर निकलने के बाद जब सोना जम जाता है तो घड़े को तोड़ कर अलग कर दिया जाता है।” परंतु संभव है इसके पीछे यह सचाई हो कि लोग अपना सोना चांदी चोरों से बचाने के लिए घड़े में रख कर जमीन में गाड़ दिया करते थे। मिट्टी में दबी हुई इस निधि को निकालने के उल्लेख ऋग्वेद में मिलते हैं (‘हिरण्यस्येव कलशं निखातं’, आदि) और हड़प्पा स्थलों से इसकी पुष्टि हुई । यह परंपरा बाद तक जारी रही है। ऋग्वेद की ऋचा “दश ते कलशानां हिरण्यानां अधामहि, भूरिदा असि वृत्रहन्” भी इस तथ्य को समझने में सहायक हो सकती है। कुछ नदियों के रेत में सोने के कण पाए जाते थे, सोने की खान के अतिरिक्त सोना प्राप्त करने का यह भी एक तरीका था। यही सोने के सोते का आधार बना हो सकता है। इस पर कोई विश्वास नहीं करेगा इसका पता उसे भी था इसलिए प्रत्यक्षदर्शी के रूप में उसका चित्रण करने के लिए वह उसका आकार भी बता देता है, “ सोता आयताकार है जिसकी चारों भुजाओ का योग 11 बालिश्त है और गहराई दो गज (1 फैथम) है।”
3. इस समृद्धि से जुड़ी हुई एक दूसरी अटकलबाजी यह है कि “भारत में एक ऐसा पेड़ होता है जो सोना, चांदी, तांबा, जस्ता और दूसरी धातुओं को अपनी ओर खींच लेता है। अगर आसपास से कोई फरगुद्दी उड़े तो उसे भी खींच लेता है और पेड़ बड़ा हो ता भेड़-बकरी तक को खींच लेता है।” (Ktesias says that in India is found a tree called the parybon. This draws to itself every- thing that comes near, as gold, silver, tin, copper and all other metals. Nay, it even attracts sparrows when they alight in its neighbourhood. Should it be of large size, it would attract even goats and sheep and similar animals.) इस अकूत संपत्ति के किस्से मध्य एशिया और ईरान में भी बहुत प्राचीन काल से गढ़े, सुनाएं, फैलाए और पीढ़ी- दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते रहे थे और जान पर खेल कर, किसी तरह इसे हासिल करने के लिए, भारत पर लूटेरे दस्तों के आक्रमण होते रहे, जिनका सामना करने में इसको दो तरह के उपाय करने पड़े, जिनमें नाम मात्र की सफलता मिली। ऋग्वेद के समय से हमें त्रसदस्यु जैसे विरुद और आर्यव्रत का प्रसार अर्थात् उनको सभ्य बनाने का प्रयास बौद्ध काल तक लगातार जारी रहा है।
4. जब वह कहता है, “सोते की तलहटी में लोहा पाया जाता है।” तो यह भारतीय इस्पात जैसी शुद्धता वाले लोहे की प्रशंसा का सूचक है जिसके कारण देश-विदेश में भारतीय तलवारों की बहुत कद्र होती थी। इतना अच्छा लोहा जिसमें जंग तक न लगे, सोने के नजदीक न मिलेगा तो और कहां मिलेगा। इसकी महिमा यह कि This iron, he says, if fixed in the earth, averts clouds and hail and thunderstorms, and he avers that he had himself twice seen the iron do this
5. “कुत्ते इतने विशाल होते है कि शेरों से भिड़ जाते हैं।” यह भारत के विषय में सच नहीं है, परंतु वासुदेव शरण अग्रवाल ने कहीं यह जिक्र किया है कि अफगानिस्तान में शेर और कुत्ते की संकर नस्ल, तैयार की जाती थी, जिसका उपयोग यशपाल जी ने दिव्या उपन्यास में भी किया है।
6. “भारत में सूरज दूसरे देशों की तुलना में दसगुना बड़ा होता है।” भारत की प्रचंड गर्मी और लू लगने से प्रतिवर्ष होने वाली मौतों के समाचार के आधार पर की गई उद्भावना है।
7. “कूर्च (रीड) { यह, बहुत पतली, वेतलता जैसी मजबूत, सरकंडा प्रजाति की घास है जिसमे लोच बहुत होती है। हम इसके लिए किरिच का प्रयोग करते थे।कलम बनाया करते थे। इससे पहले बैठने का मोढ़ा बनाया जाता था, जिसे कूर्चासन कहते थे। हिंदी का कुर्सी शब्द इसी से निकला है और इसी से निकला है संभवत है तेलुगू का क्रियापद कूर्चोंडुट- बैठना। रंगाई के लिए ब्रश (कूची) इसी से बनाया जाता था। इसकी किरिच इतनी पतली हो सकती थी की इस का झाड़ू भी बनाया जा सके। भोजपुरी में झाड़ू के लिए कूचा शब्द का प्रयोग होता है।} इतना मोटा होता है कि उसको दो आदमी हाथ फैला कर अपने घेरे में ले सकते है. और ऊंचाई इतनी कि भारी से भारी जहाज के मस्तूल की बराबरी कर सके। नर किरिच भीतर से ठोस होता है, मादा भीतर से पोला।” कहने की जरूरत नहीं की बांस पश्चिम के लिए भारत का एक अन्य आश्चर्य थाऔर इसे भारतीय रीड समझने के बाद अतिरंजना के दरवाजे खुलने ही थे।
8. “भारत का पनीर और मदिरा इतना स्वादिष्ट होता है जैसा दुनिया में कहीं हो ही नहीं सकता।” इसका विश्वास दिलाने के लिए उसने लिखा कि ‘ इसे उसने चख कर देखा था।’ बात यहां शायद छेने की और गन्ने की शराब की, की जा रही है।
9. पतित पावनी गंगा के विषय में भी कहानियां प्रचलित थीं। आश्चर्य है कि इस विषय में सूचना सत्य के अधिक निकट है, in India is a river, the Hypobaras, and that the meaning of its name is the bearer of all good things. It flows from the north into the Eastern Ocean near a mountain well-wooded with trees that produce amber. गंगा के उद्गम से लेकर सुंदरबन तक की जानकारी इसलिए चकित करती है उसके एक विवरण के अनुसार भारत में वर्षा होती ही नहीं। इसकी जल की जरूरत इसकी नदियां पूरी कर देती हैं। (He states that there are no men who live beyond the Indians, and that no rain falls in India but that the country is watered by its river.)
जो उसके सिंध, पंजाब और राजस्थान की जानकारी पर गढ़ा गया है।
(आगे जारी)