रीतियां, रूढ़ियां और विश्वास (5)
हलाला
तलाक और तिहरे तलाक पर पिछले कुछ सालों में इतनी बहस होती रही है कि सामान्य शिक्षित व्यक्ति यह जानता है कि तलाक बहुत गंभीर निर्णय है इसलिए यह क्षणिक आवेश में नहीं लिया जा सकता। कुरान के अनुसार तलाक शब्द का प्रयोग दो बार किया जा सकता है। इसके बाद अनुकंपा दिखाते हुए, मेलजोल से रहने का प्रयत्न करना चाहिए, और उसके बाद भी यदि दोनों को इस बात का अंदेशा बना रहे वे मर्यादा के भीतर नहीं रह सकते वी संबंध विच्छेद का निर्णय ले सकते हैं और ऐसा करने पर उन्हें कोई आंच नहीं आएगी। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो गुनाहगार होंगे:
[2.229] Divorce may be (pronounced) twice, then keep (them) in good fellowship or let (them) go with kindness; and it is not lawful for you to take any part of what you have given them, unless both fear that they cannot keep within the limits of Allah; then if you fear that they cannot keep within the limits of Allah, there is no blame on them for what she gives up to become free thereby. These are the limits of Allah, so do not exceed them and whoever exceeds the limits of Allah these it is that are the unjust.
यदि मुसलमान कुरान का पालन करते हैं तो एक झटके में दिया गया तिहरा तलाक स्वयं इस बात का प्रमाण है कि यह निर्णय आवेश में लिया गया था इसलिए तलाक है ही नहीं। इसके साथ संबंध खत्म होता ही नहीं।
संबंध विच्छेद के बाद भी, तलाकशुदा दंपति को यदि बाद में अपनी भूल समझ में आए तो वे आपसी समझ से अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं। यह नैसर्गिक न्याय के अनुरूप भी हैं। उनके इस निर्णय को नाजायज ठहराना और निकाह हलाला की अपमानजनक शर्त पूरा करने के बाद ही स्वीकार्य बनाना किसी मनोरोगी के दिमाग में तो आ सकता है, सुलझे दिमाग के व्यक्ति की समझ से परे है?
[2.230] So if he divorces her she shall not be lawful to him afterwards until she marries another husband; then if he divorces her there is no blame on them both if they return to each other (by marriage), if they think that they can keep within the limits of Allah, and these are the limits of Allah which He makes clear for a people who know.
यह शर्त न केवल नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध थी, दंपति के आत्मसम्मान के विरुद्ध थी, बाद के जीवन में पारस्परिक सद्भाव के विरुद्ध थी, पुरानी परंपरा के भी विरुद्ध थी और स्वयं मुहम्मद साहब के आचरण के विरुद्ध थी। इंजील के पुराने विधान के अनुसार परित्याग के बाद दूसरे से विवाह कर लेने वाली स्त्री से पुनर्विवाह संभव ही नहीं था, क्योंकि दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद वह दूषित हो जाती थी:
When a man takes a wife and marries her, if she finds no favor in his eyes because of ervat davar (some fault or indecency) and he writes her a bill of divorce and puts it in her hand and sends her out of his house–and she marries another man, and the latter… writes her a bill of divorce… or dies–then her former husband cannot marry her again because she has been defiled… (Deuteronomy 24:1-4).
स्वयं मुहम्मद के जीवन में ऐसी तीन परिस्थितियां पैदा हुईं जब तलाक की नौबत आई। पहली बार आयशा से निकाह करने के बाद जब मुहम्मद उसके साथ अधिक रातें बिताने लगे तो गृह कलह। हमेशा की तरह इस बार भी अल्लाह ने उनकी समस्या का हल निकाला। उन्हें इलहाम हुआ कि भले दूसरे मुसलमानों के लिए बीवियो के साथ बराबरी का बर्ताव जरूरी हो परंतु पैगंबर होने के नाते वह जिसके साथ अधिक समय गुजारना चाहें गुजार सकते हैे:-
[33.51] You may put off any of your wives you please and take to your bed any of them you please. Nor is it unlawful for you to receive any of those whom you have temporarily set aside. That is more proper, so that they may be contented and not vexed, and may all be pleased with what you give them.
अल्लाह के जो पैगाम आम आदमी की समझ में आ जाते हैं, वे भी सौतों की समझ में नहीं आते, इसलिए सौदा की समझ में भी नहीं आ सकते थे। कलह जारी रहा तो मुहम्मद साहब ने उसे दो बार तलाक कह दिया। (यह मेरी समझ है। वैसे पैगंबर पर आम मुसलमानों के लिए बने नियम लागू ही नहीं होते थे)। मुल्ले इसे तलाक नहीं तलाक की धमकी कहते हुए बहस करते रहे हैं कि उसी कुरान में अगले ही आयत में हलाला की अनिवार्यता है, इसलिए इससे गुजरने के बाद ही वह सौदा को दुबारा अपनी पत्नी बनाकर नहीं रख सकते थे।
हम नहीं जानते कि दो बार तलाक कहने के बाद शारीरिक संबंध जारी रख सकते हैं या नहीं, परंतु जो बात खुदाई पैगाम से भी सौदा की समझ में न आई थी, तलाक कहने के बाद पूरी तरह समझ में आ गई और उसने अनुनय किया कि भले मुहम्मद उसके हिस्से की रातें भी आयशा के साथ गुजारें, परंतु उसका परित्याग न करें। और मुहम्मद ने न केवल ऐसा किया बल्कि बाद में भी वह उसकी पूरी खोज खबर लेते और उसके साथ कभी कभी रातें भी गुजारते रहे। हम इसके विस्तार में न जाएंगे।
दूसरी घटना तब की है जब तक उनके सात विवाह हो चुके थे। सभी पत्नियों के साथ समानता के व्यवहार की कोशिश मुहम्मद भी करते थे। वह रोज सभी का हाल-चाल लेने उनके पास जाते थे उन्हें चूमते थे, परंतु रातें उसी के साथ गुजारते थे जिसकी बारी होती थी। यदि कभी किसी अभियान पर बाहर जाना होता था तो लॉटरी से तै किया जाता था उनके साथ कौन जाएगी।
बानू मुस्तलिक कबीले के सरदार ने कुछ दूसरे कबीलों को उकसा कर मदीना पर चढ़ाई की तैयारी की। मुहम्मद को पता चला तो वह एक बड़ी फौज लेकर उसको सबक सिखाने के लिए निकले, इस बार लूट के माल के प्रलोभन में मुनाफिकून (पाखंडी मुसलमान) भी साथ हो लिए थे । बीवियों में साथ जाने की बारी आयशा की निकली।
[ यदि आपको अभी तक यह समझ में नहीं आता था कि मुगल बादशाह अपने साथ अपना हरम भी क्यों ले जाते थे तो उसका रहस्य इसी से खुल जाएगा। वे अय्याशी के कारण नहीं, पैगंबर के आदर्शों पर चलने के कारण ऐसा करते थे।]
मुसलमानों ने उसे परास्त कर दिया। बहुतों को बंदी बना लिया। लूट में बहुत सारा माल मिला, और मिली हैरिस की बहुत सुंदर और नफीस पुत्री, जुवैरा, जिसकी फिरौती की रकम बहुत ऊंची लगाई गई थी। वह अपनी शिकायत लेकर मुहम्मद साहब के पास पहुंची तो उन्होंने उसे अपनी आठवीं पत्नी बना लिया। इसके बाद उन्होंने बानू मुस्तलिक को अपना ससुर मानते हुए सभी युद्ध बंदियों को आजाद कर दिया। उसकी सुंदरता से, और संभवतः उस पर मुहम्मद की विशेष कृपा दृष्टि से आयशा को जलन अनुभव हुई।[]
[‘Ayisha describes her as very beautiful and graceful. Muhammad listened to her story, proposed marriage to her and was accepted. She thus became his eighth wife. The people then looked upon the Bani Mustaliq as relatives, and set all the prisoners free, on which ‘Ayisha declared that no woman was ever such a blessing to her people as
Juwaira…. ]
वापसी के समय वह अपने ऊँट के हौदे में नहीं बैठी, ऊंट हांकने वाले गुलामों को भी इसका भान नहीं हुआ, वे ऊँट लेकर आगे बढ़ गए। वह पीछे रह गई। उनके ही कहने के अनुसार उनका कंगन (या एक दूसरी कथा के अनुसार हार) खो गया था और वह उसे ही खोजने में लगी रहीं । उन्होंने अपनी ही कुर्ती में अपने को ढक लिया और बैठ गईं। कुछ देर बाद मुहम्मद की लश्कर के एक जवान सफवान ने उन्हें पहचान लिया कि यह तो पैगंबर की बीवी हैं और उनके पास आकर उन्हें अपने ऊंट पर बैठाया और उसकी बाग पकड़े वापस लाया और इस घटना ने प्रवाद का रूप ले लिया।
[ the fact that ‘Ayisha had stated that on seeing Juwaira the ‘fire of envy arose in her heart’ may have given rise to suspicion about her conduct. ]
इसके बाद आयशा बीमार पड़ गई और अपने पिता अबू बक्र के घर चली गईं। [After her return ‘Ayisha fell sick and retired to her father’s house.]
अफवाहों का बाजार गर्म था। मुहम्मद ने ओसामा बिन जैद और अली से मशवरा किया। ओसामा आयशा के पक्ष में तरह-तरह की दलीलें देता रहा, और अली की सलाह थी कि मुहम्मद को लड़कियों की कमी न थी इसलिए उन्हें आयशा को तलाक दे देना चाहिए। मुहम्मद आयशा को छोड़ना नहीं चाहते थे, इसलिए अल्लाह ने कुछ दिन बाद उन्हें इल्हाम भेजकर बचा लिया। मुहम्मद उनके पास गए और कहा, आयशा, खुश हो जा। अल्लाह ने जाहिर कर दिया कि तू निष्कलंक है। [ ‘O ‘Ayisha rejoice, Verily the Lord hath revealed thine innocence.’ ] और जनप्रवाद को रोकने के लिए सूरा नूर की आयद हुआ [The
opening verses of the Suratu’n-Nur (xxiv) were then delivered to the people.] Sell, p.159
[This is] a surah which We have sent down and made [that within it] obligatory and revealed therein verses of clear evidence that you might remember.
The [unmarried] woman or [unmarried] man found guilty of sexual intercourse – lash each one of them with a hundred lashes, and do not be taken by pity for them in the religion of Allah, if you should believe in Allah and the Last Day. And let a group of the believers witness their punishment.
And those who accuse chaste women and then do not produce four witnesses – lash them with eighty lashes and do not accept from them testimony ever after. And those are the defiantly disobedient,
The fornicator does not marry except a [female] fornicator or polytheist, and none marries her except a fornicator or a polytheist, and that has been made unlawful to the believers.
Except for those who repent thereafter and reform, for indeed, Allah is Forgiving and Merciful. Suratu’n-Nur 24.1-5.
दुष्प्रचार करने वालों को कोड़े लगे और दुष्प्रचार बंद हो गया और प्रशस्तिगान आरंभ हो गया।
मौका एक तीसरा भी आया था, जब जैनब से निकाह करने के बाद दावत पर आए मेहमान विदा होने का नाम ही नहीं लेते थे, जिसका कुछ विस्तार से उल्लेख हम पहले कर आए हैं, इसलिए उसकी आवृत्ति करने की जरूरत नहीं.
मुसलमान मुहम्मद से शिक्षा ग्रहण नहीं करते, अरबी की जानकारी न होने और आयतों की व्याख्या में कुछ हेरफेर करने की गुंजाइश होने के कारण मुल्लों और काजियों के मोहताज बने रहते हैं, जिनमें से कुछ को हलाला के नाम पर धार्मिक व्यभिचार और आर्थिक लाभ दोनों मिलता है।