Post – 2019-11-20

तड़प किसकी थी कि पैदा हुई मेरी दुनिया।
दर्द किसका हुआ पैदा जिसे मैं झेलता हूँ
मैने मापी ही नहीं दूरियाँ नजदीकियों की
उन पहाड़ों की जिन्हें कुहनियों से ठेलता हूँ।।

Post – 2019-11-20

अखबार और संचारमाध्यम राजनीति कर रहे हैं तो समाचारों के लिए अफवाह ही बचेंगे।

Post – 2019-11-20

#संस्कृत_भाषा_का_अपमान
किसी व्यक्ति को अपना दास बना कर रखना, कारागार में बंद रखना उसका अपमान है। ठीक इसी तरह अपने स्वार्थ के लिए भाषा को दासी बना कर रखना उसका अपमान है। ब्राह्मणों ने संस्कृत भाषा और भारतीय समाज और सभ्यता का लगातार तिरस्कार किया और आज भी कर रहे हैं। ब्राह्मणों का ब्राह्मणवाद मुसलमानों के मुल्लावाद से रत्ती भर कम नहीं है। यह आज के पढ़े लिखे ब्राह्मणों में भी कितना प्रबल है इसे बनारस के संस्कृत के छात्रों ने, उनका समर्थन करने वाले अध्यापकों ने, उनके बवाल का समर्थन करने वाले सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों ने, इस पर चुप्पी साधने वालों ने, सिद्ध कर दिया। भाषा को धर्म की भाषा बना कर रखना उसे भाषा के अधिकार से वंचित करना है। हिन्दुत्व का सबसे बड़ा शत्रु ब्राह्मणवाद है जिसमें सभी हिंदुओं तक के लिए सम्मान नही है।

Post – 2019-11-19

#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (28)

#भारत_की_खोज-दस

ज्ञान की सीमा है परंतु विश्वास कि नहीं। यह सभी देशों और समाजों में पाया जाता है। ज्ञानी और विज्ञानी भी अपने संस्कारों के कारण विश्वास और अंधविश्वास के शिकार हो जाते हैं। जल प्रलय की बात इस सीमा तक तो सही है ही कि यह बहुत बड़े पैमाने पर घटित प्राकृतिक आपदा थी, जिसे भूचाल जनित सुनामी के उग्रतम प्रहार के में देखा जाना चाहिए। इसे जिस मिथकीय कलेवर में अंकित किया गया था, उसकी परंपरा भारत में ही रही है, ऐसा विलियम जोंस के भाषणों से पता चलता है। विविध देशों के मिथकों के कथाबंध में जो समानताएं हैं, उससे लगता है, यह जहाँ घटित हुई थी वहीं यह कथा गढ़ी गई थी और वही दूसरी कथाओं का आधार है। वह हिंदुओं का देश था। यहाँ तक जोंस भी सहमत दिखाई देते हैं। परंतु स्वय हिंदू कहाँ थे और उनका देश कहाँ था, असहमति यहाँ है।

उनका दावा यह है कि घटना आमू दरया और फरात तथा भारतीय सीमा से लेकर काकेशस पर्वत के बीच घटित हुई।

उन्होंने अपने तीसरे व्याख्यान से ले कर नवें व्याख्यान तक जो कुछ पेश किया है उसका सार यह कि इस प्रलय से बचा हुआ परिवार उत्तर ईरान मेंं बसा।

आगे की कहानी इस प्रकार है:
“जब उनकी संख्या बढ़ गई तो वे तीन अलग भागों में बँट गए। सभी के हिस्से में साझी भाषा का कुछ अंश आया जो धीरे धीरे लुप्त हो गया और वे नए विचारों के लिए नई उक्तियाँ गढ़ते और उनको मानते रहे। जाफर (Yafet) का वंश अनेक शाखाओं में बँटा और इसके विशाल जत्थे एशिया और यूरोप के उत्तरी भागों, और नौकायन की आरंभिक अवस्था में पश्चिमी और पूर्वी सागरों के द्वीपों में और उनसे भी आगे फैल गये, इसलिए उसमें कोई कला विकसित न हुई। साक्षरता की उन्हें जरूरत न थी। जैसे जैसे इनके कुनबे बँटते गए, इनके बीच बहुत सारी बोलियाँ पैदा होती चली गईं।

हेम (Ham) कुल के द्वारा सबसे पहले ईरान में ही खल्दियों (Chaldeans) का साम्राज्य कायम हुआ। इन्होंने लिपियों का आविष्कार किया। आकाश के ग्रहों-नक्षत्रों का नाम रखा, भारतीयों को ज्ञात चार सौ बत्तीस हजार सालों की अवधि की गणना की और पुराण कथाएँ गढ़ने की पुरानी प्रणाली आरंभ की जो कुछ तो आख्यानपरक थीं और कुछ अपने ऋषियों और आचार-संहिता का विधान करने वालों के प्रति भक्तिभाव से प्रेरित थीं। समय समय पर ये अनेक देशों और समुद्री क्षेत्रों में फैले और वहाँ अपनी बस्तियाँ बसाईं।

मिस्र, कुश और राम के वंशधर (that the tribes of Misr, Cush, and Rama) अफ्रीका और भारत में बस गए। उनमें से कुछ नौचालन का विकास करने के बाद मिस्र, फीनिस और फ्रीजिया से होते हुए, इटली और ग्रीस में पहुँचे जहाँ पहले से छिट-फुट आबादी थी। इनमें से कुछ को अपने में मिला लिया।

इसी छत्ते के एक झुंड ने उत्तर का रास्ता पकड़ा और स्केंडिनेविया में जा बसा। एक दूसरा आमू से होता इमाउस (Imaus) से काशगर, उइगुर, खता और खोतन से बढ़ता चीन और तनकूट तक जा पहुँचा जहाँ साक्षरता पाई जाती है और उन्होंने झट कलाओं का भी विकास कर लिया।

यह मानना भी अनुचित न होगा कि इनमें से ही कुछ आगे मेक्सिको और पेरू तक जा पहुँचे, जिनमें भारत और मिस्र से मिलते जुलते आदिम साहित्य और पौराणिक आख्यान पाए जाते हैं। खल्दी साम्राज्य को ओसीरिया मे कैयूमर ने ध्वस्त कर दिया, दूसरे निर्वासितों ने भारत में पनाह ली।

रही सेम की औलादें, जिनमें से कुछ पहले से ही लाल सागर के तट पर जा बसे थे। ये सीरिया की सीमा तक के अरब क्षेत्र पर कब्जा जमा बैठे।

खल्दी साम्राज्य को असीरिया के कैयूमर ने ध्वस्त कर दिया, दूसरे निर्वासितों ने भारत में शरण ली।

इन सभी परिवारों के कुछ दिलेर, जोशीले और घुमक्कड़ मिजाज के लोग जो किसी से दब कर रहना पसंद नहीं करते थे, फूट कर अलग हो गए और इन्होंने अपने अलग कुनबे बना लिए और जब तक ये सुदूर द्वीपों या रेगिस्तानों और पहाड़ी इलाकों में बस न गए।

कुछ जत्थे अपने कुल के श्रद्धेय आदि पुरुष के मरने से पहले ही प्रव्रजित हो गए होंगे।

राज्य और साम्राज्य ईसा से पन्द्रह-सोलह सौ साल से पहले कायम न हुए होंगे।

और उससे बाद के पहले एक हजार सालों में कोई ऐसी अतीत गाथा हो ही नहीं सकती थी जिसमें कपोलकथा ( fable) की मिलावट न हों। इसका अपवाद महान आपदाएँ ही हो सकती थीं। जिसे सही अर्थ मे राष्ट्र कहा जा सकता है वह इब्राहिम के की ही देन है।

आज हम इस पर कोई टिप्पणी न करेंगे। इस की हिमायत भी नहीं कि हमने इसके लिए इतना कठोर शीर्षक क्यों रखा।

Post – 2019-11-19

आज की पोस्ट मुख्यतः एशियाटिक रिसर्चेज खंड 3 के जिन दो पन्नों पर आधारित होगी वे निम्न हैंः साभार गूगल से। इसे अभी पढ़ना जरूरी नहीं। पोस्ट के बाद पढ़ना जरूरी लगे तो हू पढ़ें।

Post – 2019-11-18

#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (27)

#भारत_की_खोज- नव

हम यहां अपनी ओर से आलोचना किए बिना, विलियम जोंस के विचारों को प्रस्तुत करना चाहते हैं जिससे उनके साथ किसी प्रकार का अन्याय न होने पाए। परंतु इस बात पर गौर भी करना चाहते हैं, कि अपनी प्रतिभा के अनुरूप, ज्ञान सीमा की परिधि में, अपने समय की मर्यादाओं के भीतर भी क्या वह अंतर्विरोधों से बच सके? प्रासंगिक रूप में दूसरे विद्वानों में उनके विचारों की छाप देखने का भी प्रयत्न करेंगे।

#जल_प्रलय और #मानवता_का_पुनर्जन्म

परमात्मा ने पुरुष और स्त्री को बना तो दिया, दूसरे सभी जीव-जंतु भी बना दिए, परंतु उसके बाद जल प्रलय के समय तक का जो इतिहास है उसमें कुछ भी साफ नहीं है। जल प्रलय की कहानी भी हमारी समझ में नहीं आती, परंतु जिन देशों के पुराने अभिलेख हमें प्राप्त हैं उन सभी में, और खास करके हिंदुओं के ग्रंथों में जिनके यहाँ इसके विषय में एक पूरा पुराण मिलता है इसका जिक्र है, इसलिए मानना होता है कि यह घटित हुआ होगा यह मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं:
The sketch of antediluvian history, in which we find many dark passages, is followed by the narrative of a deluge, which destroyed the whole race of man, except four pairs; an historical fact admitted as true by every nation, to whose literature we have access, and particularly the Hindus, who have allotted an entire Purana to the detail of the event, which they relate, as usual, in symbols and allegories.वह, यहीं, यह भी स्वीकार करते हैं कि कोई परिघटना अनुपात में प्राकृतिक संभावनाओं के जितने ही विपरीत हो, कहें, चामत्कारी लगे, उसको स्वीकार करने के लिए उतने ही सशक्त प्रमाण होने चाहिए (I concur most heartily with those who insist , that, in proportion as any fact mentioned in history seems repugnant to the course of nature, or, in one word, miraculous, the stronger evidence is required to induce a rational belief of it);

परंतु वह जो मान चुके हैं उसे सर्वमान्य बनाने के लिए वह भूचालों, ज्वालामुखियों, झंझावातों, सुनामियों, दावानलों की आड़ लेकर अपने को बुद्धिवादी सिद्ध कर लेते हैं, जब कि उस प्रतिज्ञा के निकष ‘अनुपात’ का ध्यान नहीं रखते। सामान्य प्राकृतिक नियम के विपरीत घटनाएँ होती हैं (यद्यपि उनका भी नियम होता है, कारण होता है, निदान और समाधान होता है, हम उनसे अनभिज्ञ होते हैं, इसलिए वे चमत्कार प्रतीत होती हैं।)। प्रश्न यह था, क्या वे उस पैमाने पर होती है, जिस पैमाने पर जल प्रलय को घटित दिखाया गया था।

घटित की परिधि में वह भी आ सकता था यदि उसके पक्ष में उतने ही निर्णायक ठोस प्रमाण उपलब्ध होते। वे नहीं थे, परंतु अपने निर्णय को स्वीकार्य बनाने के लिए, जोंस ने पुराण का सहारा लिया, पुराणों में जो सबसे विश्वसनीय था उसकी उपेक्षा करते हुए अपनी विश्वास सीमा में जो कुछ वर्णित था उसको यथातथ्य घटित मानते हुए, अपने ही सिद्धांत को भूल गए जिसे उन्होंने पौराणिक बिंब विधान चित्र विधान और ऐतिहासिक सत्य के बीच सत्यान्वेषण के लिए तैयार किया था। यदि उसका पालन करते तो उन्हें पौराणिक अतिरंजना को यथार्थ के निकट लाते हुए, तीन निष्कर्षों पर पहुंचना चाहिए था:
पहला, यह किसी असाधारण प्राकृतिक आपदा का जो एक सीमित भौगोलिक परिवेश में घटित हुई होगी, अतिरंजन है, जिस में किसी परिवार ने चमत्कारिक परिस्थितियों में अपनी प्राण रक्षा की होगी।

दूसरा, इस घटना का क्षेत्र वही रहा होगा जो प्रायः छोटी से बड़ी तूफानी आपदाओं का शिकार होता रहता है संभव है इसी के साथ वहीं कोई बड़े पैमाने का भूचालन भी हुआ हो जिस के झटके लंबे समय तक बार-बार आते हैं और इसके कारण भी लोगों को प्राण रक्षा के लिए इधर-उधर पलायन करना पड़ा हो। जैसे फीनीशियनों को।

तीसरे, इन सभी दृष्टियों से अरक्षणीय और बदनाम दो ही क्षेत्र, पूरी दुनिया में हैं। एक मेक्सिको की खाड़ी से सटा अमेरिका और दूसरा बंगाल की खाड़ी से सटा भारत। इनमें आए साल, मानव सीमा को चुनौती देने वाले प्लावन और जब तब भूचाल आते रहते हैं।

इसी संदर्भ में उनको भारतीय पुराण साहित्य में और सामी परंपरा में सुरक्षित जल प्रलय के विवरण को देखना और समझना चाहिए था। जो बात हमारी समझ से बाहर है वह है जोंस का फरेब या अतिकथन जिसका सहारा वह लेते हैं, Now that primeval events are described to have happened between the Oxus and Euphretes, the mountains of Kakeshus and the borders of India, that is within the limits of Iran. और इस तरह वह ईरान को इसका घटना क्षेत्र सिद्ध करते हैं।

Post – 2019-11-17

#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (26)

#भारत_की_खोज-आठ

23 फरवरी 1792 को On the Origin of Families of Nations विषय पर दिया गया विलियम जॉन्स का भाषण कई दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण था। इसमें उन्होंने अपने अब तक के भाषणों का समाहार प्रस्तुत किया था। यह उनके जीवन का भी अंतिम वार्षिकी व्याख्यान था। इससे एक ओर उनके विशाल ज्ञान का परिचय मिलता है तो दूसरी ओर कल्पनाशीलता का भी नमूना देखने में आता है। इससे उनके व्यक्तित्व को समझने में भी मदद मिलती है।

विलियम जोंस असाधारण प्रतिभा और लगन के व्यक्ति थे, इसका पता पिछले लेख से मिल गया होगा। वह जिस दौर में पैदा हुए थे उसे बौद्धिकता का युग कहा जाता है, परंतु धार्मिक विश्वास इतने प्रबल थे की धार्मिक आग्रह बुद्धि पर हावी हुए बिना नहीं रह सकते थे। इसीलिए वैज्ञानिक युग सही अर्थों में चार्ल्स डार्विन के बाद आरंभ होता है, जिसके बाद प्रकृति, उसके नियम, और उसकी आंतरिक उद्विकास की क्षमता अज्ञात दैवी विधानों को किनारे कर देती है। आज भी ऐसे वैज्ञानिक मिल सकते हैं जो ईश्वर में विश्वास रखते हों। परंतु वह उन्हें एक ऐसी अज्ञात शक्ति के रूप में स्वीकार्य हो सकता है जो नियमों के अधीन हो। वह ऐसा ईश्वर नहीं हो सकता जो प्रार्थना और पूजा करने पर प्रसन्न होकर किसी के अपराधों को माफ कर सके, वह जो चाहे उसे दे सके, या नाराज होने के बाद दंडित कर सके । यदि हमें भोगना है तो अपने ही कर्मों का फल भोगना होगा, क्योंकि वह उस विराट तर्कसंगत व्यवस्था की अनिवार्यता है। विलियम जॉन्स इसके निकट पड़ते हैं।

फिर भी, विलियम जॉन्स भाववादी थे। तर्क का प्रयोग वह धार्मिक विश्वास की हिमायत करने के लिए करते थे। इस तरह की तार्किकता शंकराचार्य, गजाली, और बर्गसाँ में भी पाई जा सकती है। नस्लवाद, ईसाइयत, और राष्ट्रवाद इन तीन सीमाओं के कारण वह वह बहुमूल्य सूचनाएं देने के बाद भी विश्वसनीय नहीं रह जाते । उनमें यांत्रिकता है, वैज्ञानिकता नहीं; चतुराई है, पर कपट नहीं; वह अपनी जानकारी के भीतर कुछ छुपाते नहीं, परंतु पहुँचते उसी निष्कर्ष पर हैं, जिसे अपनी पहली टोह में सही ठहरा चुके हैं। इतिहास, भाषा विज्ञान, समाजशास्त्र और संस्कृति की हमारी गलत समझ के जनक भी वही हैं । उन गलतियों के समाधान के सूत्र भी उन्हीं के लेखन में मिल जाते हैं। पहले जो बातें मुझे समझ में नहीं आती थी उन्हें उन्हीं को पढ़कर समझ पाया और वे कितनी गलत थी, यह भी उन्हीं को पढ़ने पर पता चला।

विलियम जोंस के समय तक प्राचीन जगत के विषय में जानकारी बहुत कम थी । यह बात सभी देशों और समाजों पर लागू होती है। पिछली दो शताब्दियों में ज्ञान का जितनी तेजी से विस्तार हुआ है उसके कारण विलियम जोंस के गहन अध्ययन और चिंतन के प्रति सम्मान रखते हुए भी उनकी, पूरे विश्वास से कहीं गई, बहुत सी बातें, हमें बचकानी लगती हैं। हम इनको एक-एक करके देखना चाहेंगे।

#इतिहास
प्राचीन इतिहास को जानने के जो साधन बाद में उपलब्ध हुए या विकसित किए गए उनसे जॉन्स वंचित थे। अतीत के ज्ञान का एकमात्र स्रोत उस समय तक के पुराण थे। उनकी समझ बाइबिल और विशेषकर जेनेसिस पर आधारित है। मूसा उनकी नजर में सबसे पहले भरोसे के इतिहासकार हैं। ‘मूसा की पुस्तक के पहले ग्यारह अध्याय सामाजिक इतिहास की भूमिका हैं ( the first eleven chapters of the book, which it is thought proper to call Genesis, are merely a preface to the oldest civil history now extant, we see truth of them confirmed by antecedent reasoning, and by evidence in part highly probable.

#सृष्टि

सृष्टि के विषय में इब्रानी मजहबों लगभग सभी में यह विश्वास रहा है इसका आरंभ 5000 ईसा पूर्व के आसपास ही हुआ है।
For example, the Jewish calendar is dated from the supposed date of creation, 3761 BCE, calculated from a literal reading of the Bible. Significant numbers of Jews believe that the Genesis account is literally true and that the world was created in 6 days. In this view the world is 5,767 years old (in 2006).
Some Christians read the Genesis account very literally. For example, the influential Archbishop James Ussher (1581-1656) used the genealogies in the book of Genesis to calculate the exact moment of creation. According to him God began the work of creation at precisely 9 am on October 26, 4004 BCE.

विलियम जॉन्स के विचार इससे भिन्न नहीं लगते। वह इस तिथि को और भी बाद में लाने के लिए तैयार हो सकते थे। उन्हें लिनेइअस (Linnaeus) का यह कथन था कि सृष्टि के आदि में परमात्मा ने सभी कोटियों के जीवों की सिर्फ एक जोड़ी तैयार थी विश्वसनीय लगती थी ( “in the beginning, God created one pair only of every species which had a diversity of sex.)”

#मानवता
उन्होंने हिसाब लगाकर देखा था कि मनुष्य की सृष्टि के आरंभ से मोहम्मद के समय तक दुनिया की जो आबादी थी उसमें 3000 साल लगे होंगे। उनके तर्क को यथासंभव उन्हीं के शब्दों में रखना चाहेंगे। यहां यह याद दिला दें कि माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत 1798 में आया था, परंतु विलियम जोंस 1792 के भाषण में उससे मिलती-जुलती शब्दावली और तर्क का सहारा लेते हुए मानवता के आरंभ का समय निर्धारित कर रहे थे। सिद्धांत काफी तर्कसंगत है, परंतु आश्चर्यजनक रूप में बहुत पहले से चली आ रही मान्यताओं से मेल खाता है। मनुष्यों का एक जोड़ा 3000 साल के भीतर विश्व मानवता की तस्वीर को कितना बदल सकता था इसे समझने के लिए जिनकी जिज्ञासा हो वे नीचे के लंबे अवतरण पर ध्यान दे सकते हैं अन्यथा इसे आंख मूंदकर पार कर सकते हैं:
That one human pair was sufficient for the population of growth on a period of no sufficient length (on the very moderate supposition of lawyers and political arithmeticians, that every pair of ancestors left on an average two children, and each one of them two more) is evident from the rapid increase of numbers in geometric progression, so well known to those who have ever taken trouble to sum a series of as many terms, as they suppose generations of men in two or three thousand years. It follows that the author of nature ( for all nature proclaims its divine author) created one pair of our species; yet , had it not been (among other reforms) for the devastations, which history has recorded, of water and fire, wars, famine, and pestilence, this earth would not now have had room for us multiplied inhabitants. AR, vol. III, 481

#राष्ट्रीयता का तर्क
विकास वादियो ने जिसे उद्विकास के तर्क के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे लैमार्क ने प्रकृति की स्वधा या elan vital के रूप में प्रस्तुत किया, वह भी विलियम जॉन्स के चिंतन-फलक में था। इसका भी अनुवाद करने चलें तो विस्तार हो जाएगा, इसलिए:
that pair must have been gifted with sufficient wisdom and strength to be virtuous, and, as far as their nature admitted, happy, but entrusted with freedom of will, to be vicious and consequently degraded: whatever might be their option, they must people the region where they first were established, and their numerous descendants must necessarily seek new counties, as inclination must prompt, or accident lead, them; they would of course migrate in separate families and clans, which , forgetting by degrees the language of their common progenitor, would form new dialects to convey new ideas, both simple and complex; natural affection would unite them at first, and a sense of reciprocal utility, the great and only cement of social union in absence of public honour and justice, for which in evil times it is general substitute, would combine them at length in communities more or less regular; laws would be proposed by a part of each community, but enacted by the whole and/ governments would be variously arranged for the happiness or misery of the governed according to their own virtue and wisdom, or depravity and folly; so that in less than three thousand years, the world would exhibit the same appearances, which we may actually observe it in the days of the great Arabian impostor. .AR, Vol. III, 481-82

इस तर्क से आगे बढ़ने पर नस्ली भेद और राष्ट्रीयताओं के निर्माण का चित्र सामने आ जाता है:
we see five races of men peculiarly distinguished , in the time of Muhammad, for their multitude and extent of dominion; but we have reduced them to three, because we can discover no more, that essentially differ in language, religion, manners, and other known characteristics; now those three races, how variously soever, they may at present be dispersed and intermixed, must…have migrated originally from a central country.

अब समस्या सबके बीच में पड़ने वाली उस जगह को तलाशने की थी जहां से इन सभी का अपने-अपने क्षेत्रों में प्रव्रजन हुआ होगा:
WHILE I trace to one centre the three great families, from which those nations appear to have proceeded and then hazard a few conjectures on the different courses, which they may be supposed to have taken toward the countries, in which we find them settled at the dawn of all genuine history.
…the first race of Persians and Indians, to whom to whom we may add the Romans and Greeks, the Goths, and the old Egyptians or Ethiops originally spoke the same language and professed the same popular faith …

Post – 2019-11-16

है जिंदगी वही, वही दुनिया, वही मसले
हैं फासले वही कि जिन्हें कम न करेंगे।।

Post – 2019-11-16

वाह क्या खूब था जमाना वह
लोग हँसते थे, मैं भी लोगों पर।।