हिटलर की वापसी (2)
हिटलर सबसे बुरा आदमी नहीं था, वह बहुत सारे बुरे लोगों में से एक था, परन्तु उन्हें बचाने के लिए संचारमाध्यमों और प्रचारमाध्यमों का उपयाेग करके सारी घृणा हिटलर पर केन्द्रित कर दी गई । हत्याओं, विनाशलीलाओं की तालिका तैयार करें और तब तय करें कि हिटलर, ट्रूमैन, आइजन आवर, केनेडी, निक्सन, जानसन, लेनिन, स्तालिन आदि की निष्ठुर परपीड़कों की जघन्य गोष्ठी में उसकी जगह कहां हो सकती है।
वियतनाम युद्ध 1955-75 में किस तरह की नृशंसता बरती गई, इसकी कहानियों को कभी उस तरह प्रचारित ही नहीं किया गया जिस तरह हिटलर के द्वारा यहूदियों के उत्पीड़न की कहानियाें को या कुछ दूर तक साेवियत यातनाशिविरों की कहानियों को। युद्ध अपराधियों और मानवद्रोहियों की तालिका और भी लंबी है। ईराक की त्रासदी की ओर तो ध्यान कुछ इसलिए जा भी सका कि उसे अमेरिका जो अमानवीय कृत्य करता उसका पूर्वाभास वह स्वयं यह कह कर दे देता था कि कल सद्दाम वऐसा करेगा। मगर अमेरिकी साजिश के कारण अफ्रीका के कुछ देशों की यातना की ओर तो हमारा ध्यान ही नहीं जाता। हम गोएबेल्स को उसकी झूठ की फिलासफी के लिए कोसते हैं परन्तु प्रचारमाध्यमों और मानवाधिकार के नाम पर फैलाए गए अमेरिकी जाल के द्वारा आज तक लगातार सचाई को दबाया, कहानियों को सचाई बना कर पेश किया जाता रहा है और उसी की सफलता है कि सारी घृणा अकेले हिटलर पर थोप कर दूसरों को बचा ही नहीं लिया जाता, अपितु उनको इतना भोला बना दिया जाता है मानो वे मानवीय संवेदना से ओतप्रोत थे। सभी से हमारे राजनयिक संबंध बहुत सुथरे रहे हैं, और जब तक हिटलर ब्रिटेन और सोवियत संघ के लिए खतरा नहीं बन गया, तब तक उसके साथ इनके भी संबंध बुरे नहीं थे । लाओस जैसे छोटे से देश के साथ अमेरिका ने क्या किया इसकी भयावहता को निम्न तथ्यों से समझा जा सकता है। ध्यान रहे कि इस बीच अमेरिका मे तीन राष्ट्रपतियों का शासन रहा। सभी एक जैसे क्रूर।
”लाओस में वर्ष 1964 से लेकर 1973 तक पूरे नौ साल अमेरिकी वायुसेना ने हर आठ मिनट में बम गिराए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नौ सालों में अमेरिका ने लगभग 260 मिलयन क्लस्टर बम वियतनाम पर दागे हैं जो कि इराक के ऊपर दागे गए कुल बमों से 210 मिलियन अधिक हैं। लाओस में अमेरिका ने इतने क्लस्टर बम दागे थे कि दुनिया भर में इन बमों से शिकार हुए कुल लोगों में से आधे लोग लाओस के ही हैं।”
सुभाष चन्द्र बोस हिटलर से मिलने गए थे और उनको यह खुशफहमी थी कि वह अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाने में मददगार हो सकता है । होता तो उतना बुरा नहीं रह जाता, यद्यपि जर्मन यातनाशिविरों की कहानियां जर्मनी के पतने के बाद ही प्रकाश में आ सकीं। भारत में अशिक्षित और अल्पचेत लोगों को हिटलर की बढ़त अग्रेंजों की पराजय और अपनी मुक्ति का उपाय प्रतीत हो रहा था और यह भावना खासी व्यापक थी। मेरे गांव का इक्केवाला, विलायत, इक्के को तेज भगाने के आवेश में ‘चल बेटा हिटलर की चाल’ कहता जा रहा था। पुलिस वाले ने रोक लिया, माफी मांग कर किसी तरह बचा ।
हम यहां दो बातों की ओर ध्यान दिलाना चाहते हैं जिनका विवेचन हम पहले कर आए हैं। पहला यह कि मनुष्य एक व्यक्ति के रूप में स्वतन्त्र होता नहीं, अपितु असंख्य बन्धनों या सीमाओं के साथ पैदा होता और बढ़ता है। उसे अपनी स्वतन्त्रता स्वयं उन सीमाओं से ऊपर उठते हुए हासिल करनी होती है। यह एक तरह का आत्मविजय है।
दूसरे मनुष्य में गर्हित से गर्हित आचरण करने की शिथिलता होती है और इसके विपरीत महान से महान बलिदान देने और अकल्पनीय ऊंचाइयों तक पहुंचने की क्षमता होती है, और परिस्थितियों के दबाव में वह एक अदृश्य योजना का निमित्त मात्र बन कर रह जाता है। इसका विवेचन करते हुए तोल्स्तोय ने युद्ध और शान्ति में नैपोलियन को काल के हाथ ही एक कठपुतली मात्र सिद्ध किया था और ऐसी ही कठपुतलियां वे सभी नाम हैं जिन्हें हमने ऊपर गिनाया है जिनमें से हिटलर एक है, एकमात्र नहीं।
ऐतिहासिक परिस्थितियां उस व्यक्ति को अपने दबाव से पैदा करती हैं और इस्तेमाल करती हैं, और फिर किनारे फेंक देती हैं। मुख्य प्रश्न परिस्थितियों का है। क्या वे ऐसी हैं जिनमें कोई खलनायक पुन: पैदा हो जाय, जिनमें हिटलर पैदा हुआ था ? उत्तर नहीं में मिलेगा, कारण कोई दो परिस्थितियां समान नहीं होतीं। भारतीय संविधान ने तीनों अंगों की सीमा आैर सेनाध्यक्ष का अधिकार कार्यकारी शक्ति से युक्त प्रधानमंत्री की जगह सर्वाधिकार मुक्त राष्ट्रपति को सौंप कर तानाशाही का रास्ता बन्द कर रखा है, फिर भी आपात काल लगा, इसलिए सतर्क रहने की आवश्यकता बनी रहती है।
वह जातीय अपमान बोध जो जर्मनी में पहले महायुद्ध के बाद पैदा हुआ था, जिसमें अन्याय का गहरा पुट था, उसने एक मामूली हैसियत के परन्तु दूसरों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील और इसलिए तिलमिलाहट से भरे और कृतसंकल्प ठिगने से आदमी को केन्द्र में ला दिया। उसने लीग आफ नेशन में अपना जूता मेज पर रख कर बता दिया था कि उसके निर्णय पक्षपात पूर्ण हैं और वह उन्हें नहीं मानता। हिटलर इतिहास का चुना, भवितव्य का निमित्त था, जिसके साथ उसकी मूर्खताओं के योग ने उसे उस स्थिति में पहुंचा दिया । परन्तु मान लें, जैसा कि अन्देशा था, उसने एटम बम बना लिया होता और उसका प्रयोग अमेरिका को उसके गुर मिलने से पहले कर बैठा होता तो ? मान लें वह विजयी हो चुका होता तो? तो उन कुकृत्यों का पता तक नहीं चलता, चलता भी तो उन्हें मामूली दंड मान लिया जाता और हिटलर का मूल्यांकन बदल जाता । तब वह डरावना नहीं रह जाता।
कहते हैं जब जर्मनी ने समर्पण कर दिया था, सभी जनरल सम्मानजनक मौत मरने के लिए आत्मघात कर रहे थे, तब एक जनरल ने कहा था, ‘अलविदा। फिर मिलेंगे ‘। अर्थात् हिटलर भले न पैदा हो, वे नाजी प्रवृत्तियां पैदा हो सकती हैं।
जर्मनी में शरण लेने वाले मुसलमानों की करतूतों, और खास तौर से इस्लाम में धर्मान्तरित हाेने वाले जर्मनों ने जैसे कारनामे किए उससे जर्मनी में हिटलर की लोकप्रियता बढी है। यह बढ़त मामूली है, फिर भी हिटलर का मजाक उड़ाते हुए
एक हास्य कथा रची गई जिसका नाम था ‘वह फिर आ गया’ आगे का परिचय विकीपीडिया की निम्न पंक्तियों से प्राप्त करें:
Look Who’s Back (German: Er ist wieder da, pronounced ; translation: “He is there again”) is a bestselling German satirical novel about Adolf Hitler by Timur Vermes, published in 2012 by Eichborn Verlag.
In The Jewish Daily Forward, Gavriel Rosenfeld described the novel as “slapstick”, but with a “moral message.” However, while acknowledging that Vermes’s portrayal of Hitler as human rather than monster is intended to better explain Germany’s embrace of Nazism, Rosenfeld also states that the novel risks “glamorizing what it means to condemn”: readers can “laugh not merely at Hitler, but also with him.”
In The Sydney Morning Herald, reviewer Jason Steger, “Most people wouldn’t think it possible that if they would have lived back then they would have thought he was in some way attractive too”, he said.
There is a really weird group in Germany called Pegida. They are against muslims and islamisation of Germany and other countries.
One of the major reasons for that paradoxically are not immigrants. But a group of German extremist salafists, who were founded and consist mainly of German converts to Islam. So it’s not the immigrants, but the Germans themselves. Their leader is Pierre Vogelwikipedia.org. A German national, who says he is against Germany. Many other European countries have put him on a travel ban as a danger. But since he is German, the Germans have to keep him…
Herbert W. Armstrong was among the select few who escaped this deception. As early as spring 1945, he began warning that although Nazism had been disfigured and dismembered, its heart was still beating—slowly, quietly, undetected—in dark crevices across the planet.
क्या आपको धर्मान्तरित पियरे के कथन कि वह जर्मनी विराेधी है और जेएनयू में ऐसे ही एक तत्व द्वारा भारत की बर्वादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी में कोई समानता दिखाई देती है ? ऐसे ही जुमले, जिनका समर्थन तुम भी करते हो और जो जेएनयू की परिभाषा में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है, हिटलर बनने का रास्ता तैयार करते हैं । यह अपने को सेक्युलर कहने वालों की जिम्मेदारी है कि वे ऐसी परिस्थितियां न पैदा होने दें जो खाक से भी हिटलर गढ़ कर तैयार कर देती हैं। मोदी लोकतन्त्रवादी है और उसे यह बोध है कि उसे अपनी ऊंचाई तक लोकतन्त्र ने पहुंचाया है और इन्दिरा जी की तानाशाही ने उनको उस अधोगति में पहुंचाया था और उसी ने मोदी को अपना कद हासिल करने का अवसर दिया था।
वह सच्चे मन से सबका साथ सबका विकास का आदर्श ले कर चला था। सभी पड़ोसी देशों और विशेषत: पाकिस्तान के दरवाजे तक जा कर दस्तक देने से परहेज नहीं किया। उसके आलोचक उस नरमी का मजाक उड़ाते रहे। मोदी का प्रयास विफल हुआ, अपितु नरमी का उत्तर उद्दंडता से दिया जाता रहा जिसके परिणाम हमारे सामने हैं।
ठीक यही वाक्य घरेलू स्तर पर भी है, परन्तु सेक्युलरिस्ट समझदारी के तहत बिलगाव और छिटकाव, बिखराव और उत्तेजना की अनर्गल गतिविधियां जारी हैं और इन्होंने मुस्लिम समुदाय को इस अवसर का महत्व समझने में बाधा डाली है। आज तक मुझे ऐसा कोई मुस्लिम मित्र या तथाकथित सेक्युलरिस्ट नहीं मिला जो मोदी का आंख मूंद कर विरोध नहीं करता। जो लोग चाहते हैं, और यह देख रहे हैं कि उनके विचारों, फिकरेबाजियों, कारगुजारियों के कारण जनता में उनका भाव गिरता चला गया है और मोदी की लोकप्रियता उसकी कार्यनिष्ठा, सत्यनिष्ठा और लोकनिष्ठा के कारण बढ़ती चली गई है, यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे अात्मनिरीक्षण करें और गुणदोषपरक आलोचना करें। मोदी को आलोचकों की जरूरत है, परन्तु निन्दापाठ की नहीं। हिटलर की वापसी हिटलर की इच्छा पर नहीं, उन परिस्थितियों के दबाव पर निर्भर करती है जिसमें किसी को हिटलर बनने को बाध्य किया जा सकता है।
परन्तु हिटलर, फासिज्म, तानाशाही आदि की अास जो लोग इस बिना पर बनाए हुए हैं कि उसके अंत के साथ उस पूरी सोच का अन्त हो जाता है इसलिए स्वयं अपनी ओर से प्रयास कर रहे हैं कि मोदी की लोकप्रियता नाजिज्म का रूप ले और उससे उसका खात्मा और उनका अपना भाग्योदय हो, वे अनर्थ कर रहे हैं, और अपने प्रयास में व्यर्थ भी होंगे, क्योंकि उनका पाला एक ऐसे व्यक्ति से पड़ा है जो उनके सभी आकलनों को गलत हो जाने देता है, गलत सिद्ध करने का प्रयत्न तक नहीं करता ।