इस्लाम का प्रचार (ङ)
मोहम्मद साहब के सामने अब कोई उपाय बचा नहीं था। अल्लाह के संदेश को आधार बना कर, लोगों को इस बात का कायल करना कि वे अपने देवताओं देवियों को न मानें, मक्का वासियों की नजर में इतना गलत था कि उनको मक्कार, कपटी या सिरफिरा मानने के अतिरिक्त कोई चारा न था।
मक्का सभी अरब कबीलों का तीर्थस्थल था। उसे पवित्र माना जाता था। पवित्र मानने का कारण यह कि यहां उनके देवियों देवताओं का निवास था। उन्ही देवों और देवियां की वह निंदा कर रहे थे, और समझा रहे थे कि अल्लाह के आदेश से ऐसा कर रहे हैं। उन्हें भुला देने के बाद वह आधार ही समाप्त हो जाता था जिस पर मक्का के निवासी गर्व करते थे। जिसके कारण लगने वाले वार्षिक मेलों से अच्छी खासी कमाई हो जाती थी।
मक्का में देवताओं की तुलना में देवियों की संख्या बहुत अधिक थी। वे अल्लाह के फरिश्तों को भी परियों सुंदरियों के रूप में जानते थे। कोई फरिश्ता दूसरे देवियों की निंदा कैसे कर सकती। देवियों को वे अल्लाह की बेटियां मानते थे। अल्लाह अपनी ही बेटियों को भूलाने या मिटाने की बात कैसे कर सकता था?
उनके बाप दादा जाने कबसे इन देवियों की पूजा करते आए थे, वह सभी गलत और अकेला यह आदमी जो हमसे किसी मायने में अलग नहीं है, सही कैसे हो सकता है? फिर भी यदि कोई देवियों देवताओं को न माने इससे उन्हें कोई शिकायत नहीं थी। शिकायत इस बात से थी कि मुहम्मद उनको अपने देवी देवताओं को मानने से रोक रहा था।
ऐसे आदमी को सहन नहीं किया जा सकता था, मक्का के लोग धार्मिक सहनशीलता के आदी थे पर अपने धार्मिक विश्वास में किसी तरह का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकते थे। इसलिए वे कुरान के अर्थात मुहम्मद के इलहामों को सच मानने वालों का तिरस्कार कर रहे थे:
“ये सत्य का इंकार करने वाले लोग कहते हैं , इस कुरान को कदापि न सुनो और जब यह सुनाया जाए तो इसमें विघ्न डालो, कदाचित इसी तरह तुम दबा लो ।” …41.26, हा.मीम अलसजदा.
The Unbelievers say: “Listen not to this Qur’an, but talk at random in the midst of its (reading), that ye may gain the upper hand!”
मोहम्मद को यह अजीब लगता था एक ओर तो ये लोग बेटी पैदा होने पर ऐसा अनुभव करते हैं मानों उनकी आबरू ही चली गई, उनके बारे में शर्म से बात करते हैं, और लानत से बचने के लिए लड़कियों की जान तक ले लेते हैं और दूसरी ओर उन्हीं देवियों को खुदा की लड़कियां कह कर पूजते हैंः
And [thus, too,] they ascribe daughters unto God, who is limitless in His glory [63] – whereas for themselves [they would choose, if they could, only] what they desire. 16.57
HAS, THEN, your Sustainer distinguished you by [giving you] sons, and taken unto Himself daughters in the guise of angels? [49] Verily, you are uttering a dreadful saying! – 17:40
असहिष्णुता दोनों पक्षों की इतनी बढ़ गई थी बीच का कोई रास्ता निकलना मुश्किल था। मोहम्मद कुछ समय तक निष्क्रिय पड़े रहे। फिर उन्होंने एक तरीका निकाला कि मक्का में आने वाले यात्रियों के बीच अपने मत का प्रचार करें। कुरेशियों के प्रतिरोध ने उनको ऐसा करने को बाध्य कर दिया था। मगर एक ओर तो बाहर से आने वाले अपरिचितों को वह अपने इलाही संदेश का भरोसा देकर अपनी बात समझाते दसरी ओर उनके पीछे अबू जह्ल उन्हें यह समझाता फिरता कि इस आदमी की बातों पर गौर मत करो।
इसका लाभ मोहम्मद को मिलता, लोग सोचते उसके मंतव्य में ऐसा दम तो है जिससे हमारे विचार बदल जाए। परंतु अबू लहाब उनके ही परिवार का था, उनके ही खानदान का था और फिर भी उनका कायल नहीं हुआ था इसलिए जब वह कहता यह आदमी मक्कार है, झूठे दावे करता है, इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता तो लोगों के दिमाग पर ।इसका असर होता था।
मोहम्मद इन्हीं अनिश्चितताओं के बीच दिन काट रहे थे कि मदीने से आने वाले एक खजराज कबीले के एक यात्री दल ने उनसे मिलने के बाद इस्लाम कबूल कर लिया।(a few people from Khazraj tribe came from Madina as pilgrims. they met with Mohammed and expressed themselves favourable to his views, And he propounded to them the doctrine of Islam and recited portions of Qur’an). उन्हें मदीना आने का आमंत्रण लिया।
मदीना अभी तक मक्का से उत्तर की ओर चलने वाले सौदागरों के बीच का एक पड़ाव था। उसमें मक्का जैसी पवित्रता का भाव नहीं था। उनके लिए यदि एकेश्वरवादी होना ही था और उसकी संभावना अरब स्वाभिमान की रक्षा करते हुए मुहम्मद ने पैदा की थी तो , उनकी मुरादें पूरी हो रही थीं।
मुहम्मद के रिश्ते नाते के जो लोग मक्का में थे वे मुंह फेर चुके थे, परंतु ननिहाल के संबंध से मदीना में उनके अपने लोग थे। हिजरत इन्हीं परिस्थितियों में की गई परन्तु इस घटना के कुछ समय बाद।
यहां हम जिस पक्ष पर बल देना चाहते हैं वह यह कि पूरब ( पूरब का अर्थ पश्चिम के लिए हिंदुस्तान हुआ करता था) से आने वाली मीठी हवाओं का दौर समाप्त होने पर आ रहा था। गीता का ज्ञान हो या, भारतीय चिंता धारा का प्रभाव हो, काबा में रहते हुए, अपने सही होने के प्रमाण स्वरूप, मुहम्मद ने लगातार अपने मंतव्य को भारतीय मुहावरों में दुहरानेे का प्रयत्न किया और मानवीय हस्तक्षेप का विचार उनके मन में मक्का में रहते हुए कभी नहीं आया।
मक्का में उतरे सूरे और आयतें भारतीय मनीषा से इतना मेल खाती हैं कि उन्हें उदाहृत करने लगें तो अलग से एक पोथा तैयार हो जाएगा परंतु यहां इतना ही याद दिलाना पर्याप्त है कि वह अपनी से असहमत होने वालों को दंडित करने में इंसानों की कोई भूमिका नहीं मानते। सबको देखने वाला ईश्वर है, जांचने वाला ईश्वर है, दंड देने वाला ईश्वर है, मनुष्य के रूप में हम अपना बचाव सदाचार और आत्म नियंत्रण से ही कर सकते हैं। इसे समझने के लिए कुछ पंक्तियों को उद्धृत करना चाहेंगे:
Those who practise not regular Charity, and who even deny the Hereafter. For those who believe and work deeds of righteousness is a reward that will never fail.41.7-8
And no one will be granted such goodness except those who exercise patience and self-restraint,- none but persons of the greatest good fortune.41.35
And if (at any time) an incitement to discord is made to thee by the Evil One, seek refuge in Allah. He is the One Who hears and knows all things.41.36
No falsehood can approach it from before or behind it: It is sent down by One Full of Wisdom, Worthy of all Praise.41.42
Whoever works righteousness benefits his own soul; oever works evil, it is against his own soul: nor is thy Lord ever unjust (in the least) to His Servants.41.46
Man does not weary of asking for good (things), but if ill touches him, he gives up wh5.all hope (and) is lost in despair.41.49
When We bestow favours on man, he turns away, and gets himself remote on his side (instead of coming to Us); and when evil seizes him, (he comes) full of prolonged prayer! 41.51ुख में भूल जाता है, दुख में याद करता है।
परमात्मा ही समग्र जगत का निधान है इसकी छाया इस रोशनी में समझने का प्रयत्न करें:
Ah indeed! Are they in doubt concerning the Meeting with their Lord? Ah indeed! It is He that doth encompass all things!41.54
और हे नबी, भलाई और बुराई समान नहीं है। तुम बुराई को उस नेकी से टालो जो उत्तम हो। तुम देखोगे कि तुम्हारे साथ जिसका वैर पड़ा हुआ था वह आदमी ही मित्र बन गया है। यह गुण उन्हें ही प्राप्त होता है, जो धैर्यवान हैं, यह पद उन्हें ही प्राप्त होता है, जो भाग्यवान हैं।41
…And indeed, your Lord is full of forgiveness for the people despite their wrongdoing, and indeed, your Lord is severe in penalty. Sura Ar-Ra’d
13.6